मस्त विचार 4358
मुद्दतें लगी बुनने में ख़्वाब का स्वेटर,
तैयार हुआ तो मौसम बदल चुका था..
तैयार हुआ तो मौसम बदल चुका था..
हमारा आंकलन हमें खुद करना चाहिये..
और कही और इसे ढूंढना संभव नही है.
अपने को ही, यूं अपने में, रोज़ निखारा करता हूं.
पंखों को खोल क्योंकि …ज़माना सिर्फ़ उड़ान देखता है..