मस्त विचार 4317
खुद का किस्सा खुद को ही सुनाता हूँ,
अब गैरों पर भरोसा नहीं कर पाता हूँ….!!!
अब गैरों पर भरोसा नहीं कर पाता हूँ….!!!
कोई था मेरा, जो मेरा हुआ ही नहीं !
ज़िंदगी का गुरूर कैसा है..!!
_ बस वो वक़्त लौटा दो, जो तुम्हारे साथ बीता..!!
_ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो..!!
कौन, कब, कहाँ बदल गया सब का हिसाब रखता हूँ।।
मगर एक साथ चलना भी तो कोई कम नहीं होता..