मस्त विचार 4276
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से,
मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता ….
मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता ….
ये किस तरह की ख़मोशी हर इक सदा में है..
लेकिन हां, जिसे हम आँख भर के देख लें, उन्हें हम उलझन में डाल देते हैं…
याद तो वो है,जो महफिल में आए और अकेला कर जाए _
_ लेकिन वो बस आज के लिए ही होंगे !!
_ कुछ लोग बदल गए.. तो कोई हमें बदल गया..!!
_ हर किसी ने अपना अपना रंग दिखाया..!!
_ जीवन का इक और सुनहरा साल चला गया !!
_ चला भी नहीं और चला भी गया !!
_ अपने और गैरों में भेद समझा गया..!
_ और सारे हादसों का इल्ज़ाम अकेला दिसंबर ढ़ोता है !!
_ जीवन तो अपने ही ढंग से चलता है.