मस्त विचार 4245

क्या बेचकर हम खरीदें ” फुर्सत ऐ ” ज़िन्दगी…

_ सब कुछ तो ” गिरवी ” पड़ा है जिम्मेदारी के बाजार में..!!

‘जिम्मेदारी’ वो पिंजरा है, जहाँ इंसान आजाद होकर भी कैद है..!!

मस्त विचार 4244

इस भाग-दौड़ कि दुनियां में समझ नही आता की..

_ थकने के बाद शाम होती है या शाम होने के वजह से थकान..

“कभी-कभी बस कोई हमारी थकान समझ ले..- यही सबसे बड़ी राहत होती है.”
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