सुविचार 4062
भोजन उपलब्ध होने और उसे ग्रहण कर पाने के लिए कृतज्ञ हो कर,
_ हम भोजन के समय को भी ध्यान के समान ही बना सकते हैं.
_ हम भोजन के समय को भी ध्यान के समान ही बना सकते हैं.
_ बस चलता रहता हूँ…अपनी राह…!
अतीत में रहने के बजाय उज्ज्वल भविष्य बनाने पर ध्यान दें.
_ जिस पर पता ना लिखा हो तो कहीं नहीं पहुँचता..!!
_ अतः सुभाषित वाणी ही श्रेष्ठ है.
_ विपत्तियों से ही इंसान ज्यादा निखरते हैं.
_ बस मेरा उसमे होना झलकना चाहिए.!!
_एक बार उसे करने की कोशिश तो कीजिए.
_ और काबिले तारीफ है वो जो कठिन काम को भी सादगी से कर दे.