हम चाहे अपने मनोभावों को अपनी दृढ इच्छाशक्ति द्वारा न बदल सकें किन्तु अपनी क्रियाशीलता को अवश्य बदल सकते हैं.
और जब हम अपनी क्रियाशीलता बदल देते हैं तो भावना अपने आप ही बदल जाती है.
ज्यादा काम से कभी थकान नहीं होती है, लेकिन जिन कार्यों को हम अधूरा छोड़ देते हैं,
उनके बारे में सोच कर अवश्य थकान होती है.