ख़्वाहिशें कुछ कुछ यूँ भी अधूरी रही,
पहले उम्र नहीं थी अब उम्र नहीं रही.
जख्म कहाँ कहाँ से मिले हैं…..छोड़ इन बातों को..
जिन्दगी तू तो बता सफर और कितना बाकी है…
मुख़्तसर सा गुरुर भी ज़रूरी है जीने के लिए
ज़्यादा झुक के मिलो तो दुनिया पीठ को पायदान बना लेती है
कुछ रिश्तों में मुनाफा नहीं होता
पर जिन्दगी को अमीर बना देते हैं
जब गिला शिकवा अपनो से हो तो खामोशी ही भली
अब हर बात पे जंग हो यह जरूरी तो नहीं
दर्द की अपनी भी एक अदा है..
वो भी सहने वालों पर फ़िदा है..
मिलता तो बहुत कुछ है इस ज़िंदगी में..
बस हम गिनती उसी की करते हैं जो हासिल ना हो सका
अब न मांगेंगे ज़िन्दगी या रब
ये गुनाह हमने इक बार किया
इच्छाएँ बड़ी बेवफा होती हैं..
कमबख्त, पूरी होते ही बदल जाती हैं..
थोड़ा सुकून भी ढूँढिये जनाब,
ये जरूरतें तो कभी खत्म नहीं होंगी
मैने सिर्फ तुम्हारे कदम गिने थे, तुम्हारे क़दमों की आहट सुनी थी
तुमने आना छोड़ दिया लेकिन मैंने इंतजार करना नहीं छोड़ा
कौन कहता है कि हम झूठ नहीं बोलते
एक बार खैरियत तो पूछ के देखिए
सहम सी गई है ख्वाहिशें,,,
शायद जरूरतों ने ऊंची आवाज में बात की होगी
यू तो ज़िन्दगी तेरे सफर से शिकायते बहुत थी
मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे तो कतारे बहुत थी
सुना है.. काफी पढ़ लिख गए हो तुम..
कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते..
सो जाइये सब तकलीफों को सिरहाने रख कर ,,,क्योंकि
सुबह उठते ही इन्हें फिर से गले लगाना है.
थोड़ी थोड़ी गुफ़्तगू दोस्तों से करते रहिये
जाले लग जाते हैं अक्सर बंद मकानों में..