जब आप किसी से अपेछा नहीं रखेंगे, तो फिर आपको किसी से शिकायत भी नहीं रहेगी..
_ जो लोग शिकायत शून्य हैं, वे ही तो सहनशील हैं..!!
लोग आप से अच्छा बनने की उम्मीद तो करते हैं ; ख़ुद अच्छा बनने से परहेज़ है उन्हें..!!
मसला ये नहीं कि लोग परवाह क्यों नहीं करते, मुद्दा ये है कि हमें उनसे इतनी उम्मीद क्यों है !!
तुझे जैसे चलना है वैसे चल ज़िन्दगी, मैंने तो तुझसे हर उम्मीद ही छोड़ दी है !!
आशा, चाहे कितनी ही कम क्यों न हो, निराशा से बेहतर है..!!
अगर उम्मीदें दुख की वजह हैं तो जीने की वजह भी उम्मीदें ही हैं.
हमनें उम्मीद बहुत लगा रखी है, फिर सोचते हैं कि दुःख की वजह क्या है.!!
कभी-कभी हम गलत लोगों से, सही उम्मीदें लगा बैठते हैं.!!
जब आप औरों से उम्मीद लगाना छोड़ देते हो तो फिर वो आपकी भावनाओं को ठेस कभी नहीं पहुँचा सकते.!!
जितना आप लोगों के लिए करते हो, अगर उतने की ही आप उनसे उम्मीद भी रखते हो तो.. आप हमेशा निराश ही होने वाले हो.!!
लोग ऐसे हैं कि एक गिलास पानी पिलाने का एहसान के बदले..
_ पूरा कुआं लेने की उम्मीद रखते हैं..!!
जब सब कुछ ठीक नहीं हो तब भी न घबराएं,
_ बस आप को पता होना चाहिए कि.. टूटी उम्मीदों से चीजों को कैसे सुलझाना है.
कुछ जगह जिंदगी में कभी नहीं भरती, खाली रहती हैं, क्योंकि आपने उन्हें स्वयं बनाया है,
_ आप उन चीजों की उम्मीद कैसे कर सकते हैँ, जिन्हें आपने दूर धकेल दिया है ?
बिना किसी उम्मीद के.. साफ़ दिल के साथ हर चीज़ करते चले जाओ..
_ यकीन मानो आपको इस बात का ज़िंदगी में कभी अफ़सोस नहीं होगा.!!
जब उम्मीदें अपनों से जुड़ी होती हैं, तब उनका टूटना सबसे ज़्यादा तोड़ता है,
_ और जब वो अपना अचानक पराया लगने लगे, तब अंदर से जो खालीपन पैदा होता है, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल होता है…!
उम्मीद से कम मिलने का दर्द मन में इस कदर समा जाता है कि हम कभी देख ही नहीं पाते कि हमें जरूरत से कितना ज्यादा मिला है,
_ ना जाने बदऩसीबी के इस लेवल में ये कैसी कशिश है कि हम खुशनसीब होते हुए भी खुद को बदनसीब मानने की जिद ठान लेते हैं…!!
उन सब चीजों को ना कहना ठीक है, जिनके साथ आप सहज नहीं हैं.
_ उन लोगों के शोर को ब्लॉक करना ठीक है, जो आपका भला नहीं करते हैं.
_ कभी कभी नकारात्मकता से खुद को अलग करना ठीक है.
_ अन्य लोगों की उम्मीदों के साथ बहुत अधिक फंस न जाएं..
_ आप स्वयं निर्णय करने के लिए स्वतंत्र हैं..!!
हमारे बुरे वक्त में जो हमें उम्मीदें देते हैं, लेकिन जब बाद में वो गैर होने का अहसास कराने लगते हैं,
_ तब उन उम्मीदों का टूटना भी स्वाभाविक है,
_ तभी हमारा दिल दुखता है, लेकिन इससे उस इंसान कोई फर्क नहीं पड़ता,
_ क्योंकि अब वो आपके साथ वैसे नहीं, जैसे कभी हुआ करता था…!
पहले उम्मीद खत्म होती है, फिर शिकायतें खत्म हो जाती है.
_ उसके बाद खोने और पाने का मोह भी खत्म हो जाता है..
_ फिर कुछ नही बचता न रिश्ता, न किसी प्रकार का संबंध.. सबकुछ खत्म हो जाता है.!!
उम्मीद खुद से रखो, इंसान कब बदल जाए पता नहीं..!
_ जीवन में किसी के सहारे मत रहो, लोग ऐसी जगह साथ छोड़ेंगे कि आप यकीन भी नहीं कर पाओगे.!!
“अब कोई उम्मीद नहीं है इस जमाने से..
सब छोड़ जाते हैं किसी ना किसी बहाने से..”
हमारा एक बड़ा जीवन परेशानियों और निराशा मे बीत जाता है..
– इसका एक बड़ा कारण उम्मीदें होती हैं..
– कुछ उम्मीदें हम खुद से पाले होते हैं और कुछ उम्मीदें हम दूसरों से रखते हैं..
– ज़्यादातर आपको यही समझाया जाएगा कि दूसरों से उम्मीदें न पालो, ये दुखदाई होता है,
– लेकिन मनुष्य होकर ऐसा लगभग असंभव है कि आप दूसरों से उम्मीदें न पालें.
– हर पल आपके आस पास आपके रिश्तेदार, मित्र, जीवनसाथी इत्यादि होते हैं और उनमे से कोई न कोई आपसे उम्मीदें या आप उनसे उम्मीदें रखते ही हैं.
– उम्मीदें रक्खे बिना जीवन संभव ही नहीं है.!!
_ तो उम्मीदें रखना दुखदाई होगा और उम्मीदें रक्खे बिना जी भी नहीं सकते..
_ तो ऐसे मे कोशिश ये कर सकते हैं कि अधिकतर उम्मीदें स्वयं से रक्खें न कि अन्य आस पास के लोगों से..
_ दुख समाप्त तो नहीं होंगे लेकिन कुछ कम अवश्य हो जाएंगे..
_ ऐसा कोई भी काम.. जो आप दूसरों से expect करते हैं.. उसको सोच कर देखें कि यदि वो आप स्वयं कर लेंगे तो क्या ज्यादा बेहतर नहीं होगा..
_ और यदि आपसे नहीं हो सकता तो क्या आप उस कार्य के न होने पर भी एडजस्ट कर सकते हैं.
_ उम्मीदें थोड़ी थोड़ी करके कम करते जाने से थोड़ा अकेलापन लग सकता है लेकिन जीवन एकदम सही हो जाएगा.!!
_ यदि जीवन में इंसान की आवश्यकता सीमित हो और किसी अन्य से कोई उम्मीद और अपेछा न करे तो बेहद _ खुश जीवन आराम से जीया जा सकता है..!!
–उसे कोई कैसे दुखी कर सकता है, जिसकी किसी से कोई उम्मीद ही ना हो !!
“उम्मीद का दिया”
_ एक घर मे पांच दिए जल रहे थे, एक दिन पहले दिए ने कहा – ‘इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगो को कोई कदर नही है तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं ‘ और वह दीया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया.
_ जानते है वह दिया कौन था ? वह दीया था उत्साह का प्रतीक.
_ यह देख दूसरा दीया जो शांति का प्रतीक था, कहने लगा, मुझे भी बुझ जाना चाहिए… निरंतर शांति की रोशनी देने के बावजूद भी लोग हिंसा कर रहे है और शांति का दीया बुझ गया.
_ उत्साह और शांति के दीये बुझने के बाद, जो तीसरा दीया हिम्मत का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया.
_ उत्साह, शांति और अब हिम्मत के न रहने पर चौथे दीए ने बुझना ही उचित समझा.
_चौथा दीया समृद्धि का प्रतीक था,, सभी दीए बुझने के बाद केवल पांचवां दीया अकेला ही जल रहा था.
_ हालांकि पांचवां दीया सबसे छोटा था.. मगर फिर भी वह निरंतर जल रहा था.
_ तब उस घर मे एक लड़के ने प्रवेश किया, उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ एक ही दीया जल रहा है, वह खुशी से झूम उठा … चार दीए बुझने की वजह से वह दुखी नही हुआ बल्कि खुश हुआ, यह सोचकर कि कम से कम एक दीया तो जल रहा है.
_ उसने तुरंत पांचवां दीया उठाया और बाकी के चार दीए फिर से जला दिए.
_ जानते है वह पांचवां अनोखा दीया कौन सा था ? वह था उम्मीद का दीया ..
_ इसलिए अपने घर मे अपने मन मे हमेशा उम्मीद का दीया जलाए रखिये.
_ चाहे सब दीए बुझ जाए, लेकिन उम्मीद का दीया नही बुझना चाहिए.
_ ये एक ही दीया काफी है बाकी सब दीयों को जलाने के लिए ….
_ क्योंकि हमारे आज में जो उम्मीद जगती है.. वही उम्मीद हमारे भविष्य का निर्माण करती है.!!
– Neha Chandra