सुविचार – माँ – 021

” माँ ” सबकी जगह ले सकती है, मगर इस दुनिया में कोई भी माँ की जगह नहीं ले सकता.
” माँ ” – धरती की तरह होती हैं .. आपकी तमाम नादानियों, प्रताड़नाओं के बावज़ूद केवल जीवन और पोषण ही देतीं हैं.
दुनिया में ” माँ ” ही एकमात्र वो शख्स होती है, जो हमारी तमाम गलतियों को भुला कर हमे माफ कर देती है.
शर्ट के टूटे बटन से लेकर टूटे हुए आत्मविश्वास को जोड़ने का हुनर सिर्फ माँ में ही होता है.
एक बच्चा आपके बुढापे तक, माँ के प्यार को अनगिनत रूपों में देख चुका होता है.
कोई भी माँ अपने दुखों से बच्चों की खुशियों को ढकना नहीं चाहती है.
माँ की तरह कोई और ख्याल रख पाये, ये तो बस ख्याल ही हो सकता है.
माँ होना आसान है, _लेकिन माँ का फर्ज निभाना बड़ा कठिन है.!!
” माँ के लिए क्या लिखू, _उसकी ही तो लिखावट हूँ मैं “
महज़ एक इत्तेफ़ाक़ नहीं था वो जनाब, _

_ जनम लेते ही मां का दर्द, बच्चे को भी रुला गया ..!!

कांपते हाथों से भी …पिरोना जानती है,

वो मां है …..घर सजाना भी जानती है..

माँ कभी ये नहीं कहती, बेटा तू मुझे खुश रखना,_

_ माँ कहती है, बेटा तू सदा खुश रहना !!

मुश्किलों को वो मेरे ख्वाबों में भी पहचान ही लेती है, _

_ माँ ना जाने कैसे बिन कहे मेरी हर बात जान लेती है ..

कहां होता है इतना तजुर्बा किसी हकीम के पास ! _

_ मां आवाज सुनकर बुखार नाप लेती है !!

माँ की तरह….कोई ओर “ख्याल” रख पाये…_

_ ये तो बस….. “ख्याल” ही हो सकता है…

माँ मेरे दिल की हर इक बात जान लेती है, _

_ कह के ना ना मेरी हर बात मान लेती है !!

माँ ही एक ऐसी होती है जो हमारे मन की बात बिना कहे जान जाती है,

और जो अपने बच्चों से बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना असीम प्रेम करती है.

बिन बोले जो बोली समझ लेती है, _ चाहे कितने ही बड़े हो जाएँ हम

_ जो खुद से भी शायद नहीं कह पाते, _ वो माँ सुन लेती है ..

मां अलमारी में रखे संदूक की तरह होती है, जो भले ही कोने में पड़ा रहता है,

पर सारा कीमती सामान उसी में छुपा रहता है.

किसने कहा फ़रिश्तों के, जग में दीदार नहीं होते,

माँ की गोद में एक झपकी, सपने साकार सभी होते.

तुम क्या जानो साहब ज़ादू का असर,

खिल उठता हूँ जब पड़ती है मुझ पर मेरी माँ की नज़र.

भीड़ में भी सीने से लगा के दूध पिला देती है,

बच्चा गर भूखा हो तो माँ शर्म को भुला देती है.

बच्चों के दिलो में बसती, उसकी जाँ होती है ।

रहे किसी भी शरीर में माँ तो फिर माँ होती है ।।

शहर में थी नासाज तबियत बेटे की,,

गांव में बैठी मां ने खाना छोड़ दिया..

दवा असर ना करे तो _ नज़र उतारती है,_

_ माँ है जनाब _ वो कहाँ हार मानती है..

तेरे डिब्बे की वह दो रोटियां कहीं बिकती नहीं मां..

महंगे होटल में आज भी भूख मिटती नहीं मां..!

ज़िंदगी धूप है तो तुम गहरी छाव हो माँ,_

_ धरा पर कौन भला तुझसा स्वरुप है माँ !!

एक घर था, जहाँ माँ थी ;

स्वागत में चेहरों को हाथों में लेकर चूमती,

विदा में सिर पर हाथ रख कर देती आशीष..

घर अब भी है, लेकिन माँ नहीं..

विदा के समय, मुड़ कर देखने पर, अब वह दिखाई नहीं देती..!!

जब टूटती थी प्लेट बचपन में तुझसे,

अब माँ से टूट जाये तो, कुछ मत कहना,

जब मांगता था गुब्बारा, बचपन में माँ से,

अब माँ चश्मा मांगे तो, ना मत कहना,

जब मांगता था चॉकलेट, बचपन में माँ से,

अब माँ दवाई मांगे तो, तू ना मत कहना,

जब डांटती थी माँ, शरारत होती थी तुझसे,

अब वो सुन ना सके तो, बुरा उसे मत कहना,

जब चल नहीं पाता था, माँ पकड़ के चलाती थी,

अब चल न पाए वो, उसे सहारा तुम देना,

जब तू रोता था तब, माँ सीने से लगाती थी,

अब सह लेना दुःख तुम, माँ को रोने मत देना,

जब पैदा हुए थे तुम, तब माँ तुम्हारे पास थी,

जब अंतिम वक्त हो तो, तुम उसके पास रहना.

।। माँ ।।

मेरे इस वजूद की, तू वजह है माँ।

कैसे कह दूँ बस एक mother’s day, तेरा है माँ।

मेरी हर साँस है तू, माँ,

मेरी हर आस है तू माँ ।

उँगली पकड़ कर चलना सीखा,

मेरे हर एक कदम में, तेरा ही साहस है माँ ।

मेरे हकलाने को तूने जुबान दी है,

मुझे इस दुनिया में, मेरी पहचान दी है

मुँह में दूध की धार, अब तक है उधार,

उठना,बैठना, चलना फिरना,

सब में तेरी छाप है माँ,

तुझे ढूंढ़ता है, मन विचलित है,

तेरा बेटा उदास है, माँ ।

कैसे कह दूँ ?

सिर्फ एक ही दिन तेरा है,

मेरे जीवन का एक एक पल,

हर दिन, हर छण, तेरा ही है माँ ।

।। पीके ।।

” माँ “

माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है

माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है

माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है

माँ मरुथल में नदी या मीठा सा झरना है

माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है

माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है

माँ आखों का सिसकता हुआ किनारा है

माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है

माँ झुलसते दिनों में कोयल की बोली है

माँ मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर की रोली है

माँ कलम है, दवात है, स्याही है

माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है

माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है

माँ फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है

माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है

माँ जिंदगी है, मुहल्ले में आत्मा का भवन है

माँ चूड़ी वाले हााथों पे मजबूत कंधों का नाम है

माँ काशी है, काबा है, चारो धाम है

माँ चिंता है, याद है, हिचकी है

माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है

माँ चूल्हा, धुआँ, रोटी और हाथों का छाला है

माँ जिंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है

माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है

मां बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है

तो माँ की यह कथा अनादि है, अध्याय नहीं है

और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है

तो माँ का महत्व दुनियाँ में कम हो नहीं सकता

औ माँ जैसा दुनियाँ में कुछ हो नहीं सकता

तो मैं कला की पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ

मैं दुनियाँ की सब माताओं को प्रणाम करता हूँ।

वो मेरी बदसलूकी पर भी मुझे दुआ देती है,,,

आगोश मे ले कर सब ग़म भुला देती है,,,

यूँ लगता है जैसे जन्नत से आ रही है खुशबु ,,,,

जब वो अपने पल्लू से मुझे हवा देती है,,,

मैं जो अनजाने में करूँ कोई गलती,,,

मेरी “माँ” इस पर भी मुस्कुरा देती है,,,

क्या खूब बनाया है रब ने रिश्ता “माँ” का,,,

वीरान घर को भी “माँ” जन्नत बना देती है…!!!

नींद बहुत आती है पढ़ते पढ़ते,

माँ तुम होती तो कह देता, एक कप चाय बना दो।।

थक गया जली रोटी खा-खा के

माँ तुम होती तो कह देता, दो परांठे बना दो।।

भीग जाती हैं आँसुओं से आँखें,

माँ तुम होती तो कह देता,

आंचल से आँसु पोंछ दो।।

रोज वही नाकाम सी कोशिश

करता हूं खुश रहने की,

माँ तुम होती तो मुस्कुरा लेता,

मां बहुत दूर निकल आया हूँ घर से

बस तेरे सपनों की परवाह न होती….

तो कब का घर चला आता।।

ना भेज उसे वृद्धा आश्रम

जिसने खुद के रक्त से, भीगकर जमाया है तुझे

जिसे तू भेज रहा है वृद्धा आश्रम

उसे छोड़कर _ बाकी सब ने भरमाया है तुझे

सुखी रोटियां खाकर सुबह शाम बिताई उसने

बाकी सब ने खुद की आवश्यकता

पूरी करने के लिए फरमाया है तुझे

ना भेज उसे वृद्धा आश्रम

जिसने अपनी जिंदगी को

मौत के तले रख के जमाया है तुझे ..

*”माँ”*

लेती नहीं दवाई *”माँ”*, जोड़े पाई-पाई *”माँ*।

दुःख थे पर्वत, राई *”माँ*”, हारी नहीं लड़ाई *”माँ*”।

इस दुनियां में सब मैले हैं, किस दुनियां से आई *”माँ”*।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे, गरमागर्म रजाई *”माँ* ।

जब भी कोई रिश्ता उधड़े, करती है तुरपाई *”माँ*” ।

बाबू जी तनख़ा लाये बस, लेकिन बरक़त लाई *”माँ*”।

बाबूजी थे सख्त मगर , माखन और मलाई *”माँ*”।

बाबूजी के पाँव दबा कर सब तीरथ हो आई *”माँ*”।

नाम सभी हैं गुड़ से मीठे, मां जी, मैया, माई, *”माँ*” ।

सभी साड़ियाँ छीज गई थीं, मगर नहीं कह पाई *”माँ”* ।

घर में चूल्हे मत बाँटो रे, देती रही दुहाई *”माँ*”।

बाबूजी बीमार पड़े जब, साथ-साथ मुरझाई *”माँ”* ।

रोती है लेकिन छुप-छुप कर, बड़े सब्र की जाई *”माँ”*।

लड़ते-लड़ते, सहते-सहते, रह गई एक तिहाई *”माँ*” ।

बेटी रहे ससुराल में खुश, सब ज़ेवर दे आई *”माँ*”।

“माँ” से घर, घर लगता है, घर में घुली, समाई *”माँ*” ।

बेटे की कुर्सी है ऊँची, पर उसकी ऊँचाई *”माँ”* ।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो, याद हमेशा आई *”माँ”*

घर के शगुन सभी *”माँ”* से, है घर की शहनाई *”माँ*”।

सभी पराये हो जाते हैं, होती नहीं पराई  *मां*

अपनी सत्तर बरस की ” माँ ” को देखकर

क्या सोचा है कभी …?
वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नही सोच सकते .. कि
तुम्हारी “माँ” भी कभी घर के आंगन में
चहकती हुई , उधम मचाती
दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना – कोना गुलज़ार हो उठता था…
किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी ,तो ..
न जाने कितनी पतंगे
आसमान में कटने लगती थी..
क्या कभी सोचा है कभी …?
अट्ठारह बरस की “मां” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब बरमाला पहनाई , तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन , अपने वर को भी
नज़र उठाकर भी नही देखा..
तुमने तो कभी ये भी नही सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दांतो पर दांत रख अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो क्या कभी ..?
अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हे मानकर
अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियां
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नही ढूंढी …
और तुम
उसके झुर्रिदार कांपते हाथों
क्षीण यादाश्त
कमजोर नज़र ,और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर
खुद पर इतराते हो
ये बरसो का सफर है …!
तुम कभी सोच भी नही सकते# …!!
*मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में*

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