सुविचार – मकान – 058 | Mar 14, 2014 | सुविचार | 0 comments ‘मकान’ केवल ईंटे भर हैं । घर ईंटो और प्यार से बनता है । A Home is always a house, but a house is not necessarily a home. मकान साथ लेकर कौन जाता है, सब देखभाल ही तो करते हैं. मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है, जिसने भी ये कहा ….उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा… दीवार क्या गिरी मेरे मकान की, लोगो ने मेरे घर से रास्ते बना लिए.. तारीखों में गुम पुरखों का पैगाम बुलाता है, मुझे गॉव का टूटा मकान बुलाता है…. घर अंदर ही अंदर टूट जाते हैं, मकान खड़े रहते हैं बेशर्मों की तरह !! उग आई है घास मकान की दहलीज़ पर… अपनों को आये हुए एक ज़माना गुज़र गया. कभी गुलज़ार था जो घर चहचहाट से, आज ख़ामोशी की बेल पसरी है हर जगह.. अकेले छोड़ दिया गया पुरखों का घर, दोष बस इतना था कि मकान गाँव में था. Submit a Comment Cancel reply Your email address will not be published. Required fields are marked *Comment Name * Email * Website Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.