सुविचार – शत्रु – दुश्मन – 069

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बहुत बार ऐसा होता है कि मित्र के मरने पर इतनी हानि नहीं होती, जितनी शत्रु के मरने पर हो जाती है. क्योंकि वह जो विरोध कर रहा था, वही आपके भीतर चुनौती भी जगा रहा था. वह जिसके विरोध और संघर्ष में आप सतत रत थे, वही आपका निर्माण भी कर रहा था.

साधारणतः देखने में ऐसा लगता है कि अगर आपका शत्रु मर जाए, तो आप ज्यादा सुख में होंगे; लेकिन शायद आपको पता न हो कि आपके शत्रु के मरते ही आपके भीतर भी कुछ मर जाएगा, जो आपके शत्रु के कारण ही आपके भीतर था.

नकारात्मक सोच हर मर्ज की जड़ है. हम जिन्हें शत्रु समझते हैं, दरअसल वे व्यायामशाला के वो भार हैं, जो हमारे शरीर सौष्ठव को निखारने में मुख्य भूमिका का निर्वहन करते हैं. शत्रुविहीन व्यक्ति कभी आसमान नहीं छू सकता.

सकारात्मक सोच के सहारे आप बड़े- से- बड़े अवरोधों का सामना सुगमता से कर सकते हैं.

यदि आपका कोई दुश्मन नहीं है तो इसका अर्थ है कि आप उन जगहों पर भी ख़ामोश रहे _ जहाँ बोलना बहुत ज़रूरी था.
जब आपने किसी का हित किया हो और वही आपका दुश्मन बन गया हो..

_तो यूँ समझें कि ऐसे दुश्मन भी आप को ही निखारते हैं.!!

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