सुविचार – खर्च – बचत – 035

खर्च के साथ अपनी खुशी को जोड़ना बंद करो; _

_ इसके बजाय, बचत के साथ खुशी को जोड़ें.

व्यर्थ का खर्चा**जीवन की व्यवस्था को*

*तथा**व्यर्थ की चर्चा**मन की अवस्था को**प्रभावित करते हैं*

कमाई कि तुलना में खर्च कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं,

_हमारी निगाह इतनी पैनी नहीं है कि सच्चाई को ठीक से देख सकें..

खरीदारी हमें कभी भी वो चीज़ें नहीं देती जो हम सबसे ज़्यादा चाहते हैं;

_हमें कहीं और देखना होगा.. केवल वही खरीदें, _जो हमें चाहिए.!!

हम वह खरीदना बंद कर दें.. जो कुछ लोग चाहते हैं कि हम खरीदें.

_ भीड़ भरा रास्ता हमें अपने रास्ते पर नहीं ले जा सकता.!!

बढ़ती महंगाई के इस दौर में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वही है,

जिसने समय रहते बचत की जरुरत को समझा हो.

जितना कमाने कि ताकत है, उतना ही खर्च करो…

_या फिर जितना खर्च करने कि इच्छा हो, _उतना कमाने की ताकत रखो..

अपने खर्चों पर ध्यान रखें. अच्छा हो कि अपने खर्चों को लिखें ताकि अनावश्यक खर्च पर रोक लग सके.
खर्चे कम कीजिए — बेकार की चीजें छोड़ने पर अपने आप खर्च कम हो जाएगा.
दिखावे में घर का बजट बिगड़ता है, वरना खाने पीने और दैनिक जीवन के इतने खर्चे नहीं है !
अगर आपकी आमदनी रुपया है तो खर्चा अठन्नी ही करें. शेष पैसे को बचा कर निवेश करें.

आपके द्वारा निवेश किया गया पैसा आने वाले सालों में बढ़ता जायेगा और आकस्मिक समय आपके ही काम आएगा.

सिर्फ टाइमपास के लिए शौपिंग करने न जाएं, साथ ही, बोर हो रहे हैं या स्ट्रैस में हैं तो चलो शौपिंग कर लेते हैं, वाली आदत भी ठीक नहीं.

ऐसे में बेकार की चीजों पर पैसे खर्च हो जाते हैं.

खर्च के विषय में बेखबर रहने से मनुष्य की पूरी आयु नष्ट हो जाती है.

इसी के सदुपयोग से जीवन सरस बनता है, समाज में आदर और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है.

जरुरत पड़ने पर ही शॉपिंग करें. इसे अपनी हौबी या प्रेस्टीज इश्यू न बनने दें.
अपनी बार्डरोब हलकी रखें, क्योंकि पहनेंगे वही जो आप को बहुत पसंद है.
जिन चीज़ों की हमें ज़रूरत नहीं होती, वो भी हम खरीद लेते हैं. जिससे हमारे हाथ में एक रुपया नहीं टिकता !

यह तब एक समस्या बन जाता है, जब हमें कोई बड़ा खर्च उठाना पड़ता है.

कमाई और आमदनी से नहीं, आपकी आर्थिक स्थिति आपके खर्च से नापी जाती है.

यदि खर्च आमदनी से अधिक हुआ तो बड़ी आय से क्या लाभ?

दूरदर्शी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और खर्चों का पहले से ही बजट तैयार करता है. उसकी आय वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति में ही व्यय नहीं होती प्रत्युत वह भविष्य के लिए, बच्चों की शिक्षा, विवाह, बुढ़ापे के लिए धन एकत्रित रखता है. अपनी परिस्थिति के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य बचाता है.
जब आप अपनी कमाई घर लाते हैं, तो पहले से तय कर लीजिए कि किस चीज़ के लिए आप कितना पैसा खर्च करेंगे और उसके हिसाब से पैसे को अलग-अलग हिस्सों में बाँट दीजिए, ताकि आपकी आज की और भविष्य की ज़रूरतें पूरी हो सकें। जब आप तय हिसाब से पैसे खर्च करते हैं तो आप देख पाते हैं कि पैसा किन चीज़ों में खर्च हो रहा है और कितना पैसा गैर-ज़रूरी चीज़ों में जा रहा है। इससे आपको यह पता करने में मदद मिलेगी कि आप कहाँ बचत कर सकते हैं।
आप यह उद्देश्य सामने रखिये कि परिवार के प्रत्येक सदस्य को जीवनरक्षक पदार्थ और निपुणता दायक वस्तुएँ पर्याप्त परिणाम में प्राप्त होती रहें. जब तक ये चीजें न आ जावें, तब तक किसी प्रकार की आराम या विलासिता की वस्तुओं से बचे रहिये. यदि किसी का स्वास्थ्य खराब है, तो पहले उसकी चिकित्सा होनी चाहिए. यदि किसी विद्यार्थी का अध्ययन चल रहा है, तो उसके लिए सभी को थोड़ा बहुत त्याग करना चाहिए.
आप अपनी बचत से कितना खर्च करते है यह Important नहीं होता बल्कि आप अपने खर्चो में से कितनी बचत करते है यह ज्यादा important है. इसलिए बचत करने के सिद्धांत को समझे और बचत को हल्के में न ले. बचत का पैसा वह पैसा होता है जो आपके इमरजेंसी में आपका साथ निभाता है और आपको कई समस्याओ से बचाता है.
ऐसी जगहों से सामान खरीदिए जहाँ वे सस्ते मिलते हैं,

मगर ध्यान रखिए कि जितनी बचत होगी उससे ज़्यादा खर्चा आने-जाने में न हो जाए.

खरीदने से पहले सोचिए

खुद से ये सवाल पूछने की आदत डालिए: ‘क्या मुझे सचमुच इसकी ज़रूरत है? क्या पुराना सामान वाकई खराब हो गया है या मैं बस नयी चीज़ चाहता हूँ?’ अगर आप किसी चीज़ को बहुत कम इस्तेमाल करेंगे तो क्या उसे किराए पर लेना काफी होगा? या फिर अगर आपको लगता है कि आपको उसकी अकसर ज़रूरत पड़ेगी तो क्या पुराने (सेकंड हैंड) सामान से आपका काम चल सकता है?

दरअसल बात यह है कि अगर आप छोटी-छोटी चीज़ों में बचत करने की आदत डालें, तो आप बड़े-बड़े खर्चों में भी बचत करने की सोचेंगे।

कितना गुस्सा आता है, जब वास्तव में पैसों की ज़रूरत हो लेकिन बटुआ ख़ाली मिले. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपके पास कितने ज्यादा या कितने कम पैसे हैं, बल्कि उन पैसों को समझदारी के साथ खर्च करना ही एक अच्छा उपाय है जिससे आप बहुत से पैसे बचा भी सकते हैं.
अगर सही जांच ना की जाए तो फालतू खर्च करना एक आदत बन जाता है. अपने खर्चों को नियंत्रित करने के लिए आप चुनें कि आपको किन चीजों की जरूरत है और किन चीजों की चाहत है. इसमें अंतर रखें और अपने बजट के मुताबिक अच्छी तरह खर्च करें.
“जो इंसान अपनी कमाई और खर्च को बेहतर तरीके से संभाल ले और हिसाब से फैंसले ले_ तो वह खेल जीत ही जाता है”

_ अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी तरह के लोन पर निर्भर न रहें..!
_हम ऐसी चीजें खरीदते हैं ..जिनकी हमें जरूरत नहीं है लेकिन हम जीवन में चाहते हैं !
_ हम ऐसी चीजें इसलिए खरीदते हैं ..क्योंकि उससे हमारा भावनात्मक जुड़ाव होता है.
_ कुछ भी खरीदना एक भावनात्मक निर्णय है, तार्किक निर्णय नहीं !!
पुरानी और नई पीढ़ी की सोच में ये बड़ा अंतर है.

_ हम बचत पर जोर देते हैं और वे खर्च पर..
_ हम कर्ज लेने से डरते हैं और वे क्रेडिट कार्ड सबसे पहले बनवाते हैं.
_ हम बुढ़ापे में घर और वाहन ले पाते थे..
_ और वे जॉब लगते ही बैंक लोन लेकर घर और कार खरीदना चाहते हैं.
सदा अपनी आमदनी पर दृष्टि रखिये, आमदनी से अधिक व्यय करना नितान्त मूर्खता और दिवालियापन की निशानी है.
उतना ही खर्चा करें, जितना आप में सामर्थ्य हो. दिखावे के चक्कर में या किसी होड़ में न पड़ें, यह न तो आपकी आर्थिक सेहत के लिए अच्छा है और न ही आपकी मानसिक सेहत के लिए,

क्रेडिट कार्ड या पर्सनल लोन लेकर केवल दिखावे के लिए खर्चा करना बेवकूफी है.

उधार एक ऐसी बला है, जो मनुष्य की सब शक्तियों को क्षीण कर डालती है. उसे सबके सामने नीचा देखना पड़ता है, हाथ तंग रहता है. इसलिए निश्चय करना चाहिए कि कभी कोई चीज या रुपया उधार नहीं लेंगे.
आमदनी और खर्च के ऊपर तीखी दृष्टि रखिये. व्यय से पूर्व आमदनी खर्च का एक चिट्ठा-बजट-तैयार कर लीजिये. जो बुद्धिमान व्यक्ति अपने रुपये से अधिकतम लाभ और उपयोगिता प्राप्त करना चाहता है, कर्ज से बच कर सज्जन नागरिक का प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसे बजट बनाना आवश्यक है. बजट हमें फिजूलखर्ची से सावधान करता है. सब व्यय तथा आमदनी नक्शे की तरह हमारे समाने रहती है. टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च होता है, विलासिता से मुक्ति होती है.
बजट कैसे बनाएँ

(1) महीने के ज़रूरी खर्चों को लिख लीजिए। एक महीने में खाने, मकान (किराया या किश्‍त), बिजली, पानी, गैस, गाड़ी और ऐसी ही दूसरी ज़रूरी चीज़ों पर कितना खर्चा होता है, उसका पूरा हिसाब रखिए। जो पैसे आपको साल में एक बार चुकाने पड़ते हैं, उन्हें 12 से भाग कीजिए ताकि यह पता चले कि हर महीने उनके लिए कितना पैसा अलग रखना चाहिए।

(2) खर्च को अलग-अलग वर्गों में बाँटिए। जैसे कि खाने, घर, गाड़ी, आने-जाने और बाकी चीज़ों का खर्च।

(3) देखिए कि आपकी जमा-पूँजी में से हर महीने, हर वर्ग में कितने पैसे खर्च होंगे। “हिसाब” लगाइए कि जिन बिलों का भुगतान साल में एक बार किया जाता है, उनके लिए आपको हर महीने कितने पैसे अलग रखने चाहिए।

(4) घर के सभी सदस्यों की कुल आमदनी लिख लीजिए। उसमें से टैक्स वगैरह के पैसे घटा दीजिए, फिर उसकी तुलना कुल खर्च से कीजिए।

(5) एक महीने में हर वर्ग में कितना खर्चा होगा उसके पैसे अलग रखिए। अगर आप नकद रुपए इस्तेमाल करते हैं, तो एक आसान तरीका है कि आप हर वर्ग के लिए एक अलग लिफाफा बनाएँ। फिर समय-समय पर लिफाफे में तय खर्च के हिसाब से पैसे रख दीजिए।

सावधानी: अगर आप क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं, तो इसके इस्तेमाल में एहतियात बरतिए! कई लोगों का बजट गड़बड़ा जाता है, क्योंकि उनके सामने ‘अभी खरीदो, बाद में चुकाओ’ का लालच रहता है।

मैं प्रमाणित कर सकता हूं कि हममें से अधिकांश लोग जितना सोचते हैं _उससे अधिक पैसा अनावश्यक खरीदारी पर बर्बाद करते हैं..!!

कोई भी खरीदारी मनमाने ढंग से न करें,_कई लोगों के लिए, खरीदारी महज़ एक आदत है – _ और आदत हमेशा _असावधानी पर हावी हो जाती है.

_ और बचत करना सीखना _ कोई बलिदान नहीं है, _यह हमारे लिए एक उपहार है.
हम 80% समय अपने 20% कपड़े पहनते हैं, यह स्पष्ट है कि हम बहुत कम कपड़ों में काम चला सकते हैं..
_ हमेशा बदलते फैशन के साथ बने रहना कीमत के लायक नहीं है.
__ अक्सर, हम ऐसी चीजों के लिए भुगतान कर रहे हैं _जिनका हम शायद ही कभी उपयोग करते हैं.
पैसा बचाने का उद्देश्य _ इसके लिए जीवन का बलिदान देना नहीं है, बल्कि इसके कारण स्वतंत्रता प्राप्त करना है.
इन खर्चों को अपने जीवन से हटाकर, हम न केवल पैसे बचाते हैं, हम तनाव भी दूर करते हैं, और अधिक आनंद पाते हैं ;
_ और क्या वास्तव में जीवन इसी बारे में नहीं है ?
हमारे पास कपड़ों की इतनी अलग-अलग वस्तुएं और हमारी ज़रूरत से कहीं ज़्यादा चीज़ें क्यों हैं ?

_ क्या ऐसा इसलिए है _क्योंकि हम उन सभी से प्यार करते हैं _ या हमें इतनी सारी शर्ट या जूते की ज़रूरत है ?
_ नहीं, हम उन्हें खरीदते हैं _क्योंकि हम बदलते फैशन के साथ बने रहने की कोशिश कर रहे हैं,
– वही बदलती शैलियाँ जिनके बारे में फैशन उद्योग ने हमें बताया था कि _हमें स्टाइल में बने रहने की जरूरत है.
_ हर बार, हम अपने आप को उस चीज़ की चाहत में पाते हैं _जो वर्तमान में हमारे पास नहीं है ;
_ हम उस पर केंद्रित हो जाते हैं जो हमारे पास नहीं है, और जो अच्छाई हम में पहले से ही है, __ उस पर से अपना ध्यान खो देते हैं.
_ यदि, मनुष्य के रूप में, हम मानते हैं कि केवल कुछ नया प्राप्त करके उच्च स्तर की खुशी पाई जा सकती है, तो हम हमेशा निराश होंगे.
_ हमारी आंतरिक आवाज़ इस तरह कभी संतुष्ट नहीं होगी.
_ कोई भी चीज़ कभी भी पर्याप्त अच्छी नहीं होती…. क्योंकि हमारे अंदर लगातार असंतोष भड़कता रहता है.
_ इस प्रकार आंतरिक और बाह्य दोनों ही दृष्टियों से हमारे हृदय, मन और आत्मा में निरन्तर असन्तोष भड़कता रहता है।
_ इस असंतोष के परिणामस्वरूप क्या होता है कि _ हम जल्दी ही अपने आस-पास की और अपनी अच्छाइयों को नज़रअंदाज कर देते हैं.
क्यूँ जीते हो आप ऐसी ज़िन्दगी, जिस से हो जाये लोन- क़र्ज़.!

_ जितनी कमाई उतना खर्च, ये हुनर सीख लो ना..,
_ लेकर लोन, अन्जाने में घोट रहा, अपना गला तो नहीं..,
_ बेवजह दुनियाँ को दिखाने के लिए, क्यूँ जरूरतें बढाता है..,
_ जितना कुछ है तेरे पास, क्यूँ उसी में खुश नहीं रह पाता है..,
_ क्यूँ जरूरतें हो जाती है, जिन्दगी पर फिर सवार॥
_ अगर नहीं है सब्जी तेरे घर में, तो नमक से रोटी खा ले..,
_ अगर जरूरतें पूरी करनी है तुझे, तो मेहनत कर कर कमा ले..,
_ क्यूँ जीते हो आप ऐसी ज़िन्दगी, जिस से हो जाये लोन- क़र्ज़..!!
मैं तो हर किसी समारोह में नहीं जाता,

_ क्योंकि अगर जाऊं तो ..उस खर्च को जोड़ें तो..
_ सबसे पहले अपने काम से छुट्टी लेनी पड़ेगी ..जिस पर पैसा कटेगा,
_ यात्रा के टिकट का पैसा लगेगा, अपने घर से रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट व वहां से समारोह वेन्यू तक का भाड़ा,
_ लौटने पर यही खर्च और रास्ते में खाना पीना अलग,
_ घर में जिसको छोड़ कर जाएं ..तो उसकी देखभाल के लिए किसी को छोड़ना होगा.
_ जिसके लिए शायद पैसा भी खर्च करना पड़े.
_ दो दिन में पहनने को चार जोड़ी कपड़े चाहिए ..जो शायद नये लेना पड़ें,
_ वहां देने के लिए कोई सौजन्य भेंट खरीदनी होगी, ना ना करते 8 से 10 हजार रूपया,
_ जो पति-पत्नी दोनों जा रहे हैं ..उनका खर्च दुगना हो जाएगा..
_ कहीं ऐसा ना हो कि भावनाओं से जुड़ कर खर्च करके..
_ चादर से ज्यादा पैर पसारने की कीमत ..अगले साल भर तक जरूरी खर्चों में कटौती करके करते रहें..!!

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