सुविचार – अपमान – अनादर – तिरस्कार – 060

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*क्या है अपमान ?*

किसी व्यक्ति की वह व्यक्तिगत कल्पना जिसमें वह दूसरों से *वेवजह सम्मान* की चाह रखता है और उस चाह का पूरा ना होना ही अपमान कहलाता है. *अपेक्षा की उपेक्षा का ही तो नाम अपमान है*. हमें दूसरों से कम अपनी सोच से ज्यादा अपमानित होना पड़ता है.

किसी ने नमस्कार ना कर हमारा *अपमान* कर दिया, यह सिर्फ हमारी सोच है. उसने तुम्हारा अपमान नहीं किया, उस बात को *बार-बार सोचकर* तुम खुद अपना अपमान करते हो. जो लोग मान और सम्मान पर ज्यादा विचार करते हैं वही तो *बेचारे* कहलाते हैं। अतः अपनी सोच का स्तर ऊपर उठाकर *मान-अपमान* से मुक्त होकर *प्रसन्नता* के साथ जिन्दगी जीओ.

जहां से एक बार अपमान का घूंट पीकर वापस आ जाएं,

_ निमंत्रण मिले तो भी वहां न जाएं.!!

सार्वजनिक रूप से की गई आलोचना अपमान में बदल जाती है

और एकांत में बताने पर सलाह बन जाती है.

” उन्होंने मेरा अपमान किया ,,,”कितनी बार मैंने ऐसा महसूस किया और आज तक वह दर्द पकड़ा है.

_ उन्होंने अपने संस्कारों अनुसार व्यवहार किया, और मैंने उसे अपना अपमान समझ लिया.
_ मुझे मान और महिमा की जरुरत नहीं, कोई मेरा अपमान नहीं कर सकता.
दुरी ही अनादर का एकमात्र उत्तर है, प्रतिक्रिया न करें, बहस ना करें, बस अपनी उपस्थिति हटा दें.!!

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