सुविचार – अपमान – 060 | Mar 14, 2014 | सुविचार | 0 comments *क्या है अपमान ?* किसी व्यक्ति की वह व्यक्तिगत कल्पना जिसमें वह दूसरों से *वेवजह सम्मान* की चाह रखता है और उस चाह का पूरा ना होना ही अपमान कहलाता है. *अपेक्षा की उपेक्षा का ही तो नाम अपमान है*. हमें दूसरों से कम अपनी सोच से ज्यादा अपमानित होना पड़ता है. किसी ने नमस्कार ना कर हमारा *अपमान* कर दिया, यह सिर्फ हमारी सोच है. उसने तुम्हारा अपमान नहीं किया, उस बात को *बार-बार सोचकर* तुम खुद अपना अपमान करते हो. जो लोग मान और सम्मान पर ज्यादा विचार करते हैं वही तो *बेचारे* कहलाते हैं। अतः अपनी सोच का स्तर ऊपर उठाकर *मान-अपमान* से मुक्त होकर *प्रसन्नता* के साथ जिन्दगी जीओ. सार्वजनिक रूप से की गई आलोचना अपमान में बदल जाती है और एकांत में बताने पर सलाह बन जाती है. ” उन्होंने मेरा अपमान किया ,,,” कितनी बार मैंने ऐसा महसूस किया और आज तक वह दर्द पकड़ा है. उन्होंने अपने संस्कारों अनुसार व्यवहार किया, और मैंने उसे अपना अपमान समझ लिया. मुझे मान और महिमा की जरुरत नहीं, कोई मेरा अपमान नहीं कर सकता. Submit a Comment Cancel reply Your email address will not be published. Required fields are marked *Comment Name * Email * Website Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ