मस्त विचार 1489

ज़िन्दगी जाने कब से गुनगुना रही है …कुछ कानों में….

ज़िम्मेदारियों के शोर में, ….कुछ सुनाई नहीं देता.

कभी- कभी जल्दबाजी और ज़िम्मेदारियों में _ हम खुद को खो देते हैं और हमें ख़बर भी नहीं होती..

_खैर, खुद को खोकर, फिर खुद को पा लेने की जद्दोजहद का नाम ही ज़िंदगी है..!!

अधिकांश लोग _अपनी ज़िम्मेदारियों, संघर्षों और चिंता में _इतने फँसे हुए हैं कि _किसी और से क्या पूछे कि _वे क्या कर रहे हैं.

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