मस्त विचार 296

मैंने पत्थरों को भी रोते देखा है, झरने के रूप में

मैंने पेड़ों को प्यासा देखा है, सावन की धुप में,

घुलमिल के बहुत रहते हैं, लोग जो शातिर हैं बहुत

मैंने अपनों को तनहा देखा है, बेगानों के रूप में !

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