मस्त विचार – ज़िंदगी की कश्मकश में क्यूं ना आज थोड़ा जीया जाए – 874

ज़िंदगी की कश्मकश में क्यूं ना आज थोड़ा जीया जाए.

दुख के इन कंबलों को मिल के आज सीया जाए.

टूटे हुए रिश्तों पे क्यूं ना थोड़ा रोया जाए.

प्यार का एक बीज उनमे मिल के आज बोया जाए.

बचपन की उन उड़ानों में क्यूं ना आज थोड़ा खोया जाए.

आँखों से छलकते आंसुओं की बारिश में आज भिगोया जाए.

अपनेपन के जाल में क्यूं ना दुश्मनो को भी फसाया जाए.

पुरानी नफरतें भूल कर उनको भी आज हंसाया जाए.

पछतावे  की आग में क्यूं ना थोड़ा नहाया जाए.

अहंकार और घमंड को मिल के आज बहाया जाए.

एक कतरा ज़िंदगी का क्यूं ना थोड़ा पीया जाए.

ज़िंदगी की कश्मकश में मिल के आज जीया जाए…..

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