हम सुखी नहीं हो सकते, हम केवल इतना इंतज़ाम कर सकते हैं कि,
_ हम बहुत अधिक दुखी न हों..!!
सुख का शिखर दुख देने वाली हर चीज का उन्मूलन है.
The summit of pleasure is the elimination of all that gives pain.
सुखों की पराकाष्ठा दुखों की गहराइयों में छिपी होती है.
The peak of pleasures are disguised in the depths of sorrows.
सुखी होने में ज़्यादा खर्च नहीं होता, _
_ लेकिन हम कितने सुखी हैं, ये लोगों को दिखाने में बहुत खर्च होता है..!!!
आपको किसने दुःखी किया है ??
_दुःख ने नहीं, हमेशा सुख के सपनों ने हमें दुःखी किया.
हम उस सुख के इंतज़ार में ख़र्च हुए जा रहे हैं, जिस के स्वप्न या तो हमनें स्वयं देखें हैं या जिन्हें किसी और के द्वारा हमें दिखा दिए गए हैं;
_ हमारा आज महज उस कल के इंतज़ार में ख़त्म हो रहा है, जिसकी कोई गारंटी नहीं है कि वो कल कभी आएगा भी या नहीं !!
अपने सुख को अपने दुख में कैसे बदलना है, यह तरकीब हम सभी को आती है,
_ जाने अनजाने हम सभी इसमें माहिर हैं..
“मनुष्य अपने को नहीं पहचानता” अपने को पहचानने का कारण अगर जीवन में आ जाए, तो फिर दुःख से सुख की तरफ बढ़ने की स्थिति भी आ जाएगी.
हम उस सुख के इंतजार में हैं, जिसके स्वप्न या तो हमने स्वयं देखे हैं या जिन्हें किसी और के द्वारा हमे दिखा दिए गए है,
_ हमारा आज महज उस कल के इंतजार में खत्म हो रहा है …जिसकी कोई गारंटी नहीं है कि ..वो कल कभी आएगा भी या नही….!
यहाँ पर जो लोग आपको दुःखी, मौन या अवसादग्रस्त दिख रहे हैं,
_ उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो,
_ क्योंकि उनके लिए.. उनकी यही अवस्था सुकून भरी है,
_ खुश रहने और सकारात्मक होने की सलाह.. उन्हें केवल इर्रिटेट करेगी,
_ क्योंकि उन्होंने इस दर्द और दुःख को ही सुख मान लिया है…!!
मनुष्य को कैसे सुखी बनाया जाये, हमारी विकास यात्रा का यही उद्देश्य है, लेकिन डर है कि बड़े- बड़े मॉल, कॉलोनियों और बड़ी- बड़ी सड़कों के नीचे कहीं मानवता दब न जाये. कहीं इस प्रगति के दौर में मनुष्य किसी खंडहर में छिप न जाये. मैं भी प्रगति के पछ में हूँ और चाहता हूँ कि हमारा भी देश, प्रांत, गांव बढ़ता रहे, लेकिन यह प्रगति केवल साधनों तक सीमित न रह जाये, क्योंकि समस्त साधन हमें सुखी बनाने के लिए उपलब्ध किये जा रहे हैं, भय है कि कहीं इन साधनों के नीचे मनुष्य दब न जाये.
आजकल देखा जा रहा है कि लाखों की गाड़ी पर एक बीमार, चिंताग्रस्त व्यक्ति बैठा है, कॉलोनियों में बड़े- बड़े मकान हैं, जो संपूर्ण आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, लेकिन उन मकानों में जो लोग रह रहे हैं, वे बड़े अशांत हैं. वहां खड़ा संपूर्ण मानव तनाव और चिंताग्रस्त है, उस सोने के भवन सा दिखनेवाले मकान में कोई भी व्यक्ति हंसता हुआ नहीं दिख रहा है.
हमारी मस्ती, हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंगों को किसी की नजर लग गयी. किसकी नजर लग गयी, हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंगों पर ? किसने हमारी हरी- भरी बगिया में आग लगा दी ?
मुझे लगता है हमारा अंतर्मन राग, आकर्षण और प्रेम से रूठ गया है. हम मरुभूमि बन गये हैं. यही कारण है कि जहां जूही- चमेली की बगिया हुआ करती थी, वहां आज कंटीले वृछ आ गये हैं. यही कारण है कि हम इतना तनावग्रस्त, चिंताग्रस्त बनते जा रहे हैं. हमारे सारे अरमान सूख गये, प्रेम की धरा रेत में विलीन हो गयी.
आज आवश्यकता है कि पहले हमारे जीवन में राग, आकर्षण और प्रेम पैदा किया जाये, ताकि आज जो हम नफरत की आग में जले जा रहे हैं, घृणा और आवेश के कारण हमारा जीवन विष वृछ बन गया है, पहले हमें उसी अंतर्मन की सफाई करनी चाहिए और तब उसमें स्वस्थ पौधा लगाया जाना चाहिए, ताकि उसमें सुंदर फूल खिल सकें. क्योंकि जितनी भी हमारी विकास यात्राएं चल रही हैं, वे सभी मनुष्य के लिए हैं.
सुखी रहने का मूल मंत्र क्या है ?
सुखी जीवन का एक मात्र मूल मंत्र यही है कि आप अपने जीवन की तुलना किसी और के जीवन के साथ बिल्कुल ना करें, क्यूंकि आप सबसे अलग हैं यूनिक हैं.
_ आपको जो भी काम अच्छा लगता हो उसमे अपना ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें..
आप सदैव ही खुद को प्रसन्न पाएंगे और आपका दिमाग भी शांत रहेगा.
*” सुख की परिभाषा “*
_ असंतोषी व्यक्ति को जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती.
_ सुख का अर्थ कुछ पा लेना नहीं अपितु जो है उसमें संतोष कर लेना है.
_ जीवन में सुख तब नहीं आता जब हम कुछ पा लेते हैं बल्कि तब आता है,
_ जब सुख पाने का भाव हमारे भीतर से चला जाता है.
_ सोने के महल में भी आदमी दुःखी हो सकता है, यदि पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई हो _ और झोपड़ी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है, यदि ज्यादा पाने की लालसा मिट गई हो.
_ सुख बाहर की नहीं, भीतर की संपदा है, यह संपदा धन से नहीं धैर्य से प्राप्त होती है.
_ हमारा सुख इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने धनवान हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने धैर्यवान हैं.
_ सुख अथवा प्रसन्नता किसी व्यक्ति की स्वयं की मानसिकता पर निर्भर करती है.