सुविचार – सब जी रहे हैं – 1071

” सब जी रहे हैं “

जिसको जैसे समझ आ रहा है, _ वह वैसे जी रहा है.
कोई मछली को खाना खिला रहा है, _
_ कोई मछली को खा रहा है।
कोई किसी की जान बचा रहा है, _
_ कोई किसी की जान ले रहा है।
जिसको जैसे समझ आ रहा है, _ जी रहा है.
कोई देश के लिए जान दे रहा है, _
_ कोई देश बेच रहा है.
पर यह किसी को समझ नहीं आ रहा है, _ कि वह सही कर रहा है या ग़लत कर रहा है.
पता है कि मैं गलत कर रहा हूं, _ फिर भी उसे सही साबित कर रहा है.
इसलिए जिसको जैसे समझ आ रहा है, _ जी रहा है.
शायद रब ने दुनिया ही ऐसी बनाई कि तुम कभी सही ग़लत का भेद कर ही नहीं पाओगे.
आपस मे ही लड़ कर मर जाओगे.
मेरी इस सुंदर रचना का रसपान नहीं कर पाओगे.
कुछ ही फरिस्ते होगें.
वहीं समझ पाएंगे और रब की सृष्टि का रसपान कर पाएंगे.
बाकी रोते आए हैं रोते ही चले जाएंगे.

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