मैं 90के दशक का बचपन हूँ,
मैंने एनर्जी के लिए रुआफ्जा से लेकर रेड बुल तक का सफर तय किया है।
माचिस की डब्बी वाले फोन से स्मार्टफोन तक का सफर तय किया है।
मै वो समय हूं जब तरबूज बहुत ही बड़ा और गोलाकार होता था पर अब लंबा और छोटा हो गया।
मैंने चाचा चौधरी से लेकर सपना चौधरी तक का सफर तय किया है।
कच्चे घरों से पक्के मकानों तक का सफर…
अन्तर्देशी कागज से लेकर वाट्सएप मैसेज तक का…किया है।
टांके लगी निक्कर से जींस तक का सफर…किया है।
मैंने बालों में सरसों के तेल से लेकर जैल तक का सफर तय किया है।
चूल्हे की रोटी में लगी राख़ का भी स्वाद लिया है तो पिज़ा ओर बर्गर भी।
मैंने दूरदर्शन से लेकर 500 निजी चैनल तक का सफर तय किया है।
मैंने खट्टे मीठे बेरों से लेकर कीवी तक का सफर तय किया है।
संतरे की गोली से किंडर जोय तक का सफर तय किया है।
आज की पीढ़ी का दम तोड़ता हुआ बचपन मैं देख रहा हूं लेकिन आज की पीढ़ी मेरे समय के बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकती।
मैंने ब्लैक एंड व्हाइट समय में रंगीन और गरीबी में बहुत अमीर बचपन जिया है।
मेरे बचपन के समय को कोटि कोटि धन्यवाद।
यादें बचपन की
पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें ।
*पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ।*
“पुस्तक के बीच विद्या , *पौधे की पत्ती* *और मोरपंख रखने* से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था”।
कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था ।
*हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था ।*
*माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी , न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी* ।
सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।
*एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा* हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।
*स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है ?*
पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी ,
“पीटने वाला और पिटने
वाला दोनो खुश थे” ,
पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे, पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुवा।
*हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं,
क्योंकि हमें “आई लव यू” कहना नहीं आता था* ।
आज हम गिरते – सम्भलते , संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं,
कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं ।
*हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है, हमे हकीकतों ने पाला है,
हम सच की दुनियां में थे ।*
कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना, हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे ।
अपना अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं, शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं ।
*हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक साथ थे, काश वो समय फिर लौट आए ।
अपने बचपन को याद करें