सुविचार – खुशबू, इत्र, महक, सुवास, सुरभि, सुगंध – 129

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रात सुबह का इन्तजार नहीं करती, खुशबु मौसम का इन्तजार नहीं करती.

जो भी ज़िन्दगी से मिले उसको ख़ुशी से जीयो,

क्योंकि ज़िन्दगी वक़्त का इन्तजार नहीं करती.

यह आपके ऊपर है कि आप कूड़ा बनना चाहते हैं..

_या फूलों से महकता आंगन..!!

आदमी स्वभाव से खुशबू पसंद है, संसार में किसी को बदबू पसंद नहीं..

_ कि जब आप किसी से मिलें तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए,
_ जैसे आपके शरीर से किसी तरह की बदबू न आए.
_ आप स्त्री हों, पुरुष हों ..ये आपका कर्तव्य है कि ..जब आपको किसी से मिलना हो तो ..न्यूनतम हाइजिन का ध्यान रखा जाए.
_ आपके बदन, बाल, दांत से बदबू न आए.
_ अगर ये बदबू आती है और आप लोगों से उस बदबू के साथ मिलते हैं तो ..यकीन कीजिए, ये एक तरह का अत्याचार है.
_ ये आपका कर्तव्य है कि जब किसी से मिलें तो भले आपके पास परफ्यूम न हो, पर दुर्गंध से बचने के उपाय आपको पता होने चाहिए.
_ आप चाहे घर में हों, बाहर हों, आपका रहन-सहन ऐसा हो कि ..आपके साथ रहने वालों के साथ ऐसा कोई अत्याचार न हो, जिसे वो कह भी न सके, सह भी न सके.
_ आपकी उम्र चाहे जितनी हो, ये आपकी जिम्मेदारी है कि किसी को आपके सामने पड़ने पर पीड़ा न हो.
मैं नहीं मानता कि किसी को कभी ये पता ही नहीं चलता होगा कि उसके मुंह से, पसीने से बदबू आती है.

_ आप किसी को नहीं टोक सकते हैं.
_ अपनी पत्नी/पति को भी नहीं.
_ बहुत आसान नहीं होता है किसी को उसके सच का अहसास कराना.
_ असल में ये बचपन से घर में मिली ट्रेनिंग का हिस्सा है.
_ आदमी समझ कर भी अनजान बना रहता है तो इसके पीछे सिर्फ लापरवाही, अज्ञानता कारण है.
_ अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं.
_ बिना कर्तव्य के अधिकार का कोई मतलब नहीं रह जाता है.
_ किसी का अधिकार हो सकता है नहीं नहाना..
_ लेकिन जब आप किसी के साथ हैं, किसी के सामने हैं तो आपका कर्तव्य हो जाता है कि सामने वाले को आपसे तकलीफ़ न हो.
_ हम रोज़ की ज़िंदगी में इस बात का ख़्याल नहीं रखते कि ..हमारी वजह से उन्हे तकलीफ़ तो नहीं हो रही, जिनके साथ हम हैं.
_ ज़िंदगी में ऐसी बहुत-सी छोटी-छोटी घटनाएं होती हैं, आदतें होती हैं जिन्हें हम नज़रअंदाज करते हैं.
_ हमें बहुत बार घर में ही नहीं सिखाया जाता कि मनुष्य एक समाजिक प्राणी है ..इसका अर्थ क्या है।
_हमें समाज के बीच कैसे उठना-बैठना और चलना है, कैसे रहना है ?
_ हमारे यहाँ बचपन से रूमाल का इस्तेमाल नहीं सिखाया जाता.
_ये नहीं सिखाया जाता कि सार्वजनिक जीवन में क्या नहीं करना चाहिए.
_अब ये विषय ऐसा है कि इस पर क्या और कितना लिखें..
_कोई किसी को टोक नहीं सकता है.
_ये खुद का धर्म (ड्यूटी) है कि हर आदमी अपना ख्याल रखे.
_साफ-सफाई से रहने, सुघड़ता से रहने में कोई खर्चा नहीं आता है.
_ अपना ख्याल रखिए, अपने चाहने वालों का ख्याल रखिए.
_साफ-सफाई का होना सामाजिक होने के कारण ज़रूरी है.
हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि लोग हमें याद रखें सुगंध के रूप में ना कि एक दुर्गंध के रूप में..

_थोड़ी खुशबू उन हाथों में भी रह जाती है, जो किसो को गुलाब देते हैं.

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