मैं नहीं मानता कि किसी को कभी ये पता ही नहीं चलता होगा कि उसके मुंह से, पसीने से बदबू आती है.
_ आप किसी को नहीं टोक सकते हैं.
_ अपनी पत्नी/पति को भी नहीं.
_ बहुत आसान नहीं होता है किसी को उसके सच का अहसास कराना.
_ असल में ये बचपन से घर में मिली ट्रेनिंग का हिस्सा है.
_ आदमी समझ कर भी अनजान बना रहता है तो इसके पीछे सिर्फ लापरवाही, अज्ञानता कारण है.
_ अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं.
_ बिना कर्तव्य के अधिकार का कोई मतलब नहीं रह जाता है.
_ किसी का अधिकार हो सकता है नहीं नहाना..
_ लेकिन जब आप किसी के साथ हैं, किसी के सामने हैं तो आपका कर्तव्य हो जाता है कि सामने वाले को आपसे तकलीफ़ न हो.
_ हम रोज़ की ज़िंदगी में इस बात का ख़्याल नहीं रखते कि ..हमारी वजह से उन्हे तकलीफ़ तो नहीं हो रही, जिनके साथ हम हैं.
_ ज़िंदगी में ऐसी बहुत-सी छोटी-छोटी घटनाएं होती हैं, आदतें होती हैं जिन्हें हम नज़रअंदाज करते हैं.
_ हमें बहुत बार घर में ही नहीं सिखाया जाता कि मनुष्य एक समाजिक प्राणी है ..इसका अर्थ क्या है।
_हमें समाज के बीच कैसे उठना-बैठना और चलना है, कैसे रहना है ?
_ हमारे यहाँ बचपन से रूमाल का इस्तेमाल नहीं सिखाया जाता.
_ये नहीं सिखाया जाता कि सार्वजनिक जीवन में क्या नहीं करना चाहिए.
_अब ये विषय ऐसा है कि इस पर क्या और कितना लिखें..
_कोई किसी को टोक नहीं सकता है.
_ये खुद का धर्म (ड्यूटी) है कि हर आदमी अपना ख्याल रखे.
_साफ-सफाई से रहने, सुघड़ता से रहने में कोई खर्चा नहीं आता है.
_ अपना ख्याल रखिए, अपने चाहने वालों का ख्याल रखिए.
_साफ-सफाई का होना सामाजिक होने के कारण ज़रूरी है.