हम कुछ भी कर लें, सफ़ल हो जाएं पर मन में छिपी कुछ शून्यताओं को कभी नहीं भर पाते …
_ वो स्मृतियों के दंश के रूप में वर्तमान रहकर हमेशा चुभती रहती हैं..!
_ कभी–कभी जीवन हर तरफ़ से ठीक दिखता है—काम, ज़िम्मेदारियाँ, सफलताएँ… सब अपनी जगह पर..
_ फिर भी भीतर कुछ खाली-सा रह जाता है.
_ ये वही शून्यताएँ हैं जिन्हें न हम भर पाते हैं, न उनसे भाग पाते हैं.
_ कुछ स्मृतियाँ ऐसी होती हैं जो समय के साथ धुंधली नहीं पड़तीं—
_ वे वर्तमान के अंदर ही जड़ें जमाकर बैठ जाती हैं.
_ दिन में नहीं तो रात के सन्नाटे में चुभ जाती हैं.
_ और हमें याद दिलाती हैं कि अनकही बातें, अधूरे रिश्ते, खोए हुए पल—
मन में अपनी जगह कभी नहीं छोड़ते.
_ “मैं किन यादों को ढो रहा हूँ, जिन्हें छोड़ने का वक्त आ चुका है ?”
_ ये प्रश्न हल नहीं देते, लेकिन भीतर एक शांत खिड़की खोल देते हैं—
जहाँ सच बिना डर के दिखने लगता है.!!