आजकल देखा जा रहा है कि लाखों की गाड़ी पर एक बीमार, चिंताग्रस्त व्यक्ति बैठा है, कॉलोनियों में बड़े- बड़े मकान हैं, जो संपूर्ण आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, लेकिन उन मकानों में जो लोग रह रहे हैं, वे बड़े अशांत हैं. वहां खड़ा संपूर्ण मानव तनाव और चिंताग्रस्त है, उस सोने के भवन सा दिखनेवाले मकान में कोई भी व्यक्ति हंसता हुआ नहीं दिख रहा है.
हमारी मस्ती, हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंगों को किसी की नजर लग गयी. किसकी नजर लग गयी, हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंगों पर ? किसने हमारी हरी- भरी बगिया में आग लगा दी ?
मुझे लगता है हमारा अंतर्मन राग, आकर्षण और प्रेम से रूठ गया है. हम मरुभूमि बन गये हैं. यही कारण है कि जहां जूही- चमेली की बगिया हुआ करती थी, वहां आज कंटीले वृछ आ गये हैं. यही कारण है कि हम इतना तनावग्रस्त, चिंताग्रस्त बनते जा रहे हैं. हमारे सारे अरमान सूख गये, प्रेम की धरा रेत में विलीन हो गयी.
आज आवश्यकता है कि पहले हमारे जीवन में राग, आकर्षण और प्रेम पैदा किया जाये, ताकि आज जो हम नफरत की आग में जले जा रहे हैं, घृणा और आवेश के कारण हमारा जीवन विष वृछ बन गया है, पहले हमें उसी अंतर्मन की सफाई करनी चाहिए और तब उसमें स्वस्थ पौधा लगाया जाना चाहिए, ताकि उसमें सुंदर फूल खिल सकें. क्योंकि जितनी भी हमारी विकास यात्राएं चल रही हैं, वे सभी मनुष्य के लिए हैं.