सुविचार – शिष्य और गुरु – 207

मन के अंधेरों को तू है मिटाता.

_ ज्ञान के प्रकाश को है बिछाता.
_ प्रेम की पुलक को है बढ़ाता.
_ भटकों को सन्मार्ग दिखाता.
_ रोते मन को रोज हंसाता.
_ मृत जीवन में सांस चलाता.
_ दुखियों के दुख दर्द मिटाता.
_ मोह ममता से बाहर लाता.
_ सदाचार का पाठ पढ़ाता.
_ साहिब का सन्देश सुनाता.
_ क्या है उस से अपना नाता ?
शिष्य और सतगुरु का::::::
आया त्यौहार गुरु पूनम का, उत्सव और मनाना क्या ?

_ जब अधिकार मिला गुरु पूजन का, तो देवी देव रिझाना क्या ?
_ जब आये द्वार गुरु के तो, जग में आना- जाना क्या ?
_ सच्चे स्नेही सदगुरु मिले तो, दुनिया को अपनाना क्या ?
_ स्वामी एक वही हैं अपने, औरों को शीश झुकाना क्या ?
_ गुरुज्ञान उड़ान उड़ाय रहे तो, लंबी रेस लगाना क्या ?
_ जब पास में साहिब बताय रहें तो, बुद्धि के बैल दौड़ाना क्या ?
_ जब आप ही अपना दे रहे तो, विषय विकारों से पाना क्या ?
_ जब मन मन्दिर में देव मिले तो, मन्दिर मस्जिद जाना क्या ?
_ जब मौन का मन्त्र मिला प्यारा तो, कहना और सुनाना क्या ?
_ अजपा जाप चले हरदम तो, मुख से अब चिल्लाना क्या ?
_ जब बूंद बने मयखाना तो, पीना और पिलाना क्या ?
_ नाम नशा उतरे नहीं तो, मयख़ाने में जाना क्या ?
_ जब निर्भयनाद का पाठ पढ़ा तो, डरना और डराना क्या ?
_ जब समता का साम्राज्य मिला तो, परिस्थितियों से घबराना क्या ?
_ चट्टान, तूफ़ान हो राह कंटीले पर, मंजिल से हट जाना क्या ?
_ जब राह साहिब के चल दिये तो, पीछे कदम हटाना क्या ?
_ जीवन अनमोल मिला मानव, तड़प- तड़प मर जाना क्या ?
_ सत्य- सनातन साहिब को, ना जाना तो जाना क्या ?
आया त्यौहार गुरु पूनम का, उत्सव और मनाना क्या ?

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