अपने मरने के दिन न गिनें, ये न सोचें कि अब बीस साल बचे हैं, अब दस साल बचे हैं और अब पांच साल बचे हैं. बस वर्त्तमान में भरपूर जीयें.
हमें यह समझना होगा कि जिस दिन को हमने खुल कर जी लिया, वही ख़ास दिन है. बाकि तो सिर्फ तारीखें हैं, जो आयेंगीं और जायेंगी. बेहतर है कि हम रोज खुल कर जीयें.