कई बार, दुःख दरअसल एक धक्का होता है, जो “वक़्त” इंसान को आगे धकेलने के लिए लगाता है…
लेकिन ज़्यादातर इंसान आगे बढ़ने की बजाय इस धक्के से गिर जाता है, और फ़िर गिर कर उठने में या तो बहुत देर लगाता है, या उठता ही नहीं…..
लेकिन ज़्यादातर इंसान आगे बढ़ने की बजाय इस धक्के से गिर जाता है, और फ़िर गिर कर उठने में या तो बहुत देर लगाता है, या उठता ही नहीं…..