चिंतन के समय में इंसान जब चिंता की चिता पर बैठ जाता है, तब पहले सब्र का बांध टूटता है;
फिर विवेक साथ छोड़ देता है और अंत में जुबान बेकाबू हो जाती है !!
यही हमारे पतन का रास्ता बनता है.
फिर विवेक साथ छोड़ देता है और अंत में जुबान बेकाबू हो जाती है !!
यही हमारे पतन का रास्ता बनता है.