कर्म का उद्देश्य जीवन को अभिव्यक्त करना है. यदि जीवन प्राकृतिक रूप से और बिना किसी को हानि पहुँचाए अभिव्यक्त होता है तो इसमें न तो कोई पाप है और न ही कोई पुण्य.
कर्म का उद्देश्य जीवन को अभिव्यक्त करना है. यदि जीवन प्राकृतिक रूप से और बिना किसी को हानि पहुँचाए अभिव्यक्त होता है तो इसमें न तो कोई पाप है और न ही कोई पुण्य.
कई कर्म स्वाभाविक रूप से होते हैं लेकिन बाद में पता चलता है कि वे गलत थे.
_ स्वाभाविक रूप से मन में गलत कर्मों का अपराधबोध भी बना रहता है.
_ जो हो गया उसे मिटाया तो नहीं जा सकता लेकिन इंसान को हर दिन अपराध बोध की आग में जलने को मजबूर होना पड़ता है.