अच्छी थी पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो जाम बहुत है..
_ फुर्र हो गई फुर्सत अब तो, सबके पास काम बहुत है..
_ नहीं जरुरत बूढ़ों की अब, हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है..
_ उजड़ गए सब बाग़ बगीचे, दो गमलों में शान बहुत है..
_ मट्ठा, दही नहीं खाते हैं, कहते हैं जुकाम बहुत है..
_ पीते हैं जब चाय तब कहीं, कहते हैं आराम बहुत है..
_ बंद हो गई चिट्ठी-पत्री, व्हाट्सप्प पर पैगाम बहुत है..
_ आदी हैं ए सी के इतने, कहते बाहर घाम बहुत है..
_ झुके-झुके स्कूली बच्चे, बस्तों में सामान बहुत है..
_ नहीं बचे कोई सगे-संबंधी, अकड़-ऐंठ-अहसान बहुत हैं..
_ सुविधाओं का ढेर लगा है, पर इंसान परेशान बहुत है..
_अच्छी थी पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो जाम बहुत है..