बात उन दिनों की है जब बाज़ार में
छोले भटूरे 4-5 रु के दो होते थे।
मकान छोटे मगर दिल बड़े होते थे।
यह Space/Privacy जैसे शब्दों के तो माने भी नहीं पता थे क्योंकि छतें पड़ोसियों से जुड़ी होती थी और
टायलेट तक सांझा होते थे।
दूर के रिश्तेदारों के नाम तक पड़ोसियों को रटे होते थे।
डेढ़ दर्जन के परिवार का 3 कमरों में ठाठ से बसर होता था।
छुट्टियों में रिश्तेदारों का परिवार भी साथ होता था।
काली दाल को घी में सूखे धनिए का छौंक लगा छक कर खाते थे, फिर आम और ठंडे दूध पीते हुए बच्चे छत पर बिस्तर मिनटों में लगाते थे।
सूर्य उदय से पहले उठ भी जाते थे।
पैसे कम पर खुशियां बहुत थी।
फ़िल्मों के डायलॉग से शामें कटती थी।
ईगो,अहम् या नखरे कहाँ किसी में होते थे ?
VCR किराये पर लेकर रात भर पड़ोसियों के साथ मिल कर फिल्मे देखते थे,तेरा मेरा नहीं, सबकुछ हमारा कहलाता था।
भाई की शादी में आया सामान,ननद की शादी में ही जाता था।
शादी ब्याह अपने आप में त्योहार होते थे, बाहर से आए संबंधी पड़ोसियों के घर ही सोते थे।
मांगे हुए गद्दे, मटर छीलते परिवार, कढ़ाई में पकती सब्ज़ियों ओर,पनीर और आइसक्रीम पर नज़र रखे फूफा जी, वाह क्या नज़ारे होते थे..
घंटे भर की कुट्टी और मिनटों में अब्बा होते थे।
बुआ मामा, चाचा और मासी के बच्चे सब भाई बहन कहलाते थे, उनके आगे की रिश्तेदार भी पूरी डिटेल से गिनवाते थे।
सब बड़े भाई बहनों के कपड़े बिना शर्म के पहनते थे,बताया था ना कि ईगो और अहम् पास भी ना मंडराते थे।
आज दौर बदल गया।
छोले भटूरे खाने हल्दीराम जाने लगे हैं,
पांच सौ का नोट बेफिक्र थमाने लगे हैं।
मकान आलीशान, मन परेशान हो रहे हैं,
कमरों से जुड़े टायलेट हैं फिर भी प्राइवेसी को रो रहे हैं।
बच्चों से बड़ों तक को स्पेस चाहिए,बगल वाले घर में कौन रहता है, नाम तो बताइए ?
आज सबको अलग कमरा चाहिए,
बीबी को पंखा पति को AC चाहिए।
अब कौन गर्मी की छुट्टियों में किसी के घर बिताता है? अपने कहाँ Vacation पर हैं,Facebook बताता है।
फिक्र और वज़न बढ़ रहे हैं,आज पैसा और कैसे बढ़ाएं इसी फिक्र में घुल रहे हैं।
आज 56 भोग खाते हैं, फिर पचाने बेमन से Gym जाते हैं।
घर, गाड़ी, बैंक में जमा धन, खुशियों के सामान सब हैं, खुशियाँ बांटने वाले नहीं हैं।
मामा चाचा के बच्चे अब Cousins और उनके आगे के Distant Relatives हो गए हैं।
Social Media पर कई बहनें और Bro ज़रूर हो गए हैं,
अब लोग समय बिताने के लिए Mall जाते हैं और Mall में Shopping करने के लिए कपड़े खरीदते हैं।
अब बच्चों को कोई Cousin कपड़े नहीं देता क्योंकि लेने वाले का ईगो और अहम् पीछा नहीं छोड़ता।
अब शादियों में भी रिश्तेदार बस मूंह दिखाने आते हैं,
घर में नहीं उन्हें अब होटल में ठहराते हैं।
सारे परिवार वाले अब मेकअप करवा,
खुद मेहमानों की तरह जाते हैं।
अब फूफा जी नहीं, खाने का ज़िम्मा Caterer उठाते हैं।
*दिखावे की दुनिया में रिश्ते नाते छूट गए,*
*मेरे बचपन के साथी कहाँ गुम गए ?*
*अगर ज़िन्दगी से ब्लाक सभी रिश्ते अनब्लाक कर दें, तो खुशियों के पल मिल सकते हैं।*
*पर बनावटी दुनिया मे बनावटी रिश्तों के बीच बनावटी ज़िन्दगी जी रहे है …*