ज़िन्दगी जाने कब से गुनगुना रही है …कुछ कानों में….
ज़िम्मेदारियों के शोर में, ….कुछ सुनाई नहीं देता.
कभी- कभी जल्दबाजी और ज़िम्मेदारियों में _ हम खुद को खो देते हैं
और हमें ख़बर भी नहीं होती..
_खैर, खुद को खोकर, फिर खुद को पा लेने की जद्दोजहद का नाम ही ज़िंदगी है..!!
अधिकांश लोग _अपनी ज़िम्मेदारियों, संघर्षों और चिंता में _इतने फँसे हुए हैं कि
_किसी और से क्या पूछे कि _वे क्या कर रहे हैं.