सच्ची प्रतिष्ठा और सम्मान के लिए संपत्ति की जरुरत नहीं, उस के लिए त्याग व सेवा काफी है.
क्रोध में आदमी अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है.
कविता सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएँ चाहे वे दुःख की हों या सुख की, उसी समय सम्पन्न होती हैं, जब हम दुःख या सुख का अनुभव करते हैं.
सिर्फ उसी को अपनी सम्पति समझो, जिसको तुमने अपने परिश्रम से कमाया है.
विपत्ति से बढ़ कर अनुभव सीखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला.
कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब से नहीं.
जिनके लिए अपनी जिंदगानी खराब कर दो, वे भी गाढ़े समय पर मुँह फेर लेते हैं.
निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है.
घमण्डी आदमी प्रायः शक्की हुआ करता है.
कार्य कुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है.
जो अन्त तक साथ निभाए, ऐसा साथी पत्त्नी के सिवा दूसरा नहीं.
सन्तोष सेतु जब टूट जाता है, तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है.
खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है.
जीवन नाम है, सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का.
कर्त्तव्य ही ऐसा आदर्श है, जो कभी धोखा नहीं दे सकता.
केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है.
स्त्री पृथ्वी की भांति धैर्यवान है, शान्ति संपन्न है, सहिष्णु है.
सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्त्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं.
संतान को विवाहित देखना, बुढ़ापे की सब से बड़ी अभिलाषा है.
बिना ठोकर खाए आदमी की आँख नहीं खुलती.
पश्चात्ताप के कड़वे फल कभी न कभी सभी को चखने पड़ते हैं.
प्रेम, वसंत समीर है, द्वेष, ग्रीष्म की लू.
अनुराग, यौवन, रूप या धन से नहीं उत्पन्न होता. अनुराग अनुराग से उत्पन्न होता है.
अतीत चाहे दुखद ही क्यों न हो, उस की स्मृतियां मधुर होती हैं.
बुराई से सब घृणा करते हैं, इसलिए बुरों में परस्पर प्रेम होता है. भलाई की सारा संसार प्रशंसा करता है, इसलिए भलों में विरोध होता है.
मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है.
अन्याय में सहयोग देना अन्याय करने के सामान है.
स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है.