Quotes by आचार्य प्रशांत

अध्यात्म सबसे ऊँची कामना की बात है: _ “चाहेंगे, मगर जो उच्चतम है सिर्फ़ उसको !”

औसत इच्छाओं में ही जीवन लगाना हो तो _ अध्यात्म में समय व्यर्थ न करें.

जिसे प्यास लगती है, पानी उसे उपलब्ध होना शुरू हो जाता है ;

_ भौतिक जीवन में भले ऐसा न होता हो, पर अध्यात्म में ये जादू सदा होता है.

” अध्यात्म पलायन नहीं ” केवल अँधेरे और अज्ञान को त्यागना है, और कुछ नहीं..
आध्यात्मिकता, अनावश्यक को ख़त्म करने का अनुशासन है.
तुम दुनिया को समझने लगो और दुनिया को तुम समझ में आना बंद हो जाओ ;

_ तो जान लेना कि _ ज़िन्दगी सही दिशा में जा रही है..!

किसी भी कीमत पर _ एक सही जिंदगी जीना_ एक अभ्यास और आदत की बात होती है,

_ एक बार आप को इसकी आदत लग गई _ फिर आप नीचे गिरना बर्दाश्त ही नहीं करते;
_ फिर आप कहते है _ जान दे दूंगा लेकिन नीचे नही गिरूंगा.
अगर सब कुछ गँवा कर भी एक खरा जीवन मिल जाए, तो सौदा मुनाफ़े का है ;
_अगर वो खरापन गँवा कर अथाह दौलत भी मिल जाए, तो आप लुट गए !!
कोई कितना भी लुभाए, कुछ भी करे, अपनी जरूरतें कम-से-कम रखो.
जो लोग दुनिया को समझने लगते हैं, _

_ फिर दुनिया को वो कम समझ में आते हैं..

बहुत जल्द किसी के हो मत जाया करो,

ऐसे ही कहीं के हो मत जाया करो,

तुम्हें तो पराया होना है,

तुम्हें अपना ही नहीं होना है,

किसी और के कैसे हो बैठे..!!

दुनिया कितनी भी रंगीन हो, उसका इस्तेमाल पुल की तरह ही करना _

_ पुल से गुजर जाते हैं, पुल पर घर नहीं बनाते..

जिसकी ख़ातिर दुनिया की हज़ार ठोकरें सहीं,

आँख बंद करी तो पाया मुझे उसकी ज़रूरत नहीं.

चाहा उसको जो चाहने लायक था,

_ अब कौन परवाह करे कि मिला या नहीं मिला !!

जब आप ही वो नहीं रहेंगे, जो आप हुआ करते थे,

_ तो संसार आपके साथ _ वो कैसे कर लेगा _ जो किया करता था ?

गुरु का काम है _ तुम्हें सारे ज्ञान से मुक्ति देना _ सारी बातें बोली इसलिए जाती है ताकि जिन बातों में तुम उलझे बैठे हो _ उनकी निरर्थकता तुम्हें दिख जाए ;

कोई बात तुमको इसलिए नहीं बोली जाती कि तुम उसको पकड़ लो _ उसको सत्य समझ लो..

आप मुक्त होते जा रहे हो, इसका एक प्रमाण यह होगा कि आपको व्यर्थ बातों का संकलन करने में रूचि नहीं बचेगी ; कम होती जाएगी, कम होती जाएगी..

कोई आप को आ कर के फ़िज़ूल कि बातें बताना शुरू भी कर देगा तो आप को उबासी आने लगेगी, और आप उनकी फिजूल बातों की आंतरिक रूप से उपेक्षा करते रहेंगे.

जिस दिन अपना कद शरीर की ऊंचाई से नहीं, बल्कि मन की गहराई से नापने लगो –

– उस दिन समझ लेना – बड़े हो गए.

दुःख जीवन में अनिवार्य नहीं है, तुम बेवकूफ़ बन रहे हो, और तुम बेवकूफ़ इसलिए बन रहे हो,

क्योंकि तुम्हारे चारों ओर लोग ऐसे हैं, जिन्होंने जीवन व्यर्थ जगहों पर ही बिताया है.

जो रिश्ते तुम्हारी बेहोशी और अंधेरे को और घना करते हैं, उन रिश्तों से बाहर आओ।

_ जहाँ कहीं तुम्हें दुःख है, भय है, संशय है, जहाँ कहीं तुम्हारे जीवन में पचास तरह के उपद्रव हैं,

_ उस तरफ़ को बढ़ना छोड़ो ; _ यही राह है.

हमारे रिश्तों में बड़ी भूल रहती है, हमें कभी भी तुम नहीं चाहिए,

हमें हमेशा तुमसे कुछ चाहिए !!

और जिसे तुमसे कुछ चाहिए, वो तुम देना बंद कर दो, तो रिश्ता टुट जाता है,

रिश्ता हमेशा ऐसा बनाना, जिसमें कोई मांग ना हो, कोई शर्त ना हो !!

किसी भी कीमत पर एक सही जिंदगी जीना _ एक अभ्यास और आदत की बात होती है,

एक बार आप को इसकी आदत लग गई  _ फिर आप नीचे गिरना बर्दाश्त ही नहीं करते;

फिर आप कहते है _जान दे दुगा लेकिन नीचे नही गिरूंगा..!!

दिन ऐसा बिताओ कि रात को बिलकुल पड़ो और सो जाओ.

_ खाली करो अपने आपको, _ हर दृष्टि से स्वस्थ रहोगे – शारीरिक दृष्टि से भी, क्योंकि श्रम किया,

और मानसिक दृष्टि से भी, क्योंकि कोई बोझ नहीं बचाया अपने ऊपर.

ज़रूरत तो तुम्हारी बहुत छोटी होती हैं, तुम्हें पैसा ज़रूरत के लिए नहीं चाहिए होता है !

तुम्हें पैसा चाहिए होता है, _सामाजिक रुतबा बनाने में।

ज़्यादातर लोग जिन्हें भविष्य की बड़ी चिंता होती है, वो वही लोग हैं जिनका वर्तमान उखड़ा हुआ होता है.
जब भी कभी कोई बहुत हावी हो रहा हो आपके ऊपर,

कोई परिस्थिति, कोई व्यक्ति, कोई विचार, या कुछ भी, तो उससे लड़िए मत.

_ अपने मन को तलाशिए, उसमें ऐसा क्या है ; जिसका उपयोग करके वो व्यक्ति आपको नचा रहा है ?

तुमने बहुत कुछ अच्छा-अच्छा किया, ठीक-ठीक किया।

पर जो कुछ भी तुम कर रहे थे, उसको करने से पहले भी, करने के दौरान भी, और करने के बाद भी _ रह गए तुम पहले जैसा ही !

तो जो कुछ भी किया _सब बेकार है।

यह मत पूछो कि गुस्सा आने पर क्या करें ?

पूछो कि जीवन कैसा हो __ जिसमें कुंठा और क्रोध के बीज ही न हों.

जब भी निर्णय की घड़ी आए, जो कि लगातार आती ही रहती है; _ यही सवाल पूछिए,

चैन किधर है ? किधर को जाऊँ तो शांति है ? हर निर्णय अपने आप हो जायेगा.

तुम दाम चुका – चुका के बेचैनी उठाते है, कोई बैचेनी ऐसी नहीं है, जो मुफ़्त मिलती हो !

चैन तो मुफ़्त है, बैचेनी के बड़े दाम हैं !!

जाने हुए को जीना ही ज्ञान कहलाता है और ज्ञान को जीना तकलीफ़ नहीं शांति देता है ; _तुम्हारा डर तुमसे झूठ बोल रहा है.
जब तुम ध्यान से जीवन जीना शुरू करते हो, सिर्फ़ तब पहली बार पता चलता है कि तुम कितनी झूठी दुनिया में आज तक जी रहे थे.
कुछ पारलौकिक नहीं जानना है, ये जो सामने का संसार, उसी को साफ़ साफ़ नजरों से पूरा देखना है.
तुम जितने ऊँचे उठते जाओगे _ दुनिया को देखने का _ तुम्हारा नजरिया _ उतना ही साफ़ होता जाएगा.
जो स्वयं शांत हो जाता है, वो बिलकुल समझ जाता है कि, _ बाहर क्या- क्या अशांति चल रही है.
जब तुम्हें कुछ पता ही ना हो, और तुम्हारे साथ बहुत कुछ हो रहा हो _ वही बेहोशी है.
शांति बहुत बड़ी चीज़ होती है, _ उसके लिए जितना झुकना पड़े _ झुक जाना.
जीवन तुम्हारा ऐसा हो कि _ दूसरों के मन में तुम पर हावी होने का ख़्याल ही ना आए.
” ख़ुद जानो ख़ुद समझो ” – और फ़िर उससे एक सुंदर व्यवस्था निकलेगी _ उस पर जियो !
किसी तलाश है ? _ यही नहीं पता तो, सिर्फ भटकते ही रहोगे !!
दुनिया को भी अगर बारीकी से देख लिया तो, अपने आप को भी समझ जाओगे.
कहीं हमारे पहुँचने से पहले देर न हो जाये, _ और हम पूरी जिंदगी पछतायें..
सही चुनाव कर लो, उसके बाद _ ताक़त जहाँ से आनी होगी, आएगी..
‘दूर बैठ कर ताली बजाना आसान है, _ पास आकर साथ देना मुश्किल !
आपकी तकलीफें आपसे दूर नहीं हो सकती _ आप अपनी तकलीफों से दूर हो सकते हैं.
दुनिया की समझ इसलिये होनी चाहिये ताकि तुम दुनिया में ही फंस कर न रह जाओ.
कुछ चीजें छोड़ी इसलिए जाती हैं, _ ताकि उससे बेहतर कुछ पाया जा सके.
जो अपने दुःख के मूल में पहुंच जाता है, मात्र वही अपने दुःख से मुक्त हो पाता है.
चीजों को कीमत देते- देते हम ज़िंदगी को कीमत देना भूल जाते हैं.
नया जानकर _ तुम पुरानी ज़िंदगी में वापस कैसे चले जाते हो ?
न सुख की आशा, न दुख का डर _ जो सही है वो चुपचाप कर..
जिसने अपने खर्चे बढ़ा लिए, _ उसे तो ग़ुलाम होना ही पड़ेगा…
खुद जग जाओ, _ नहीं तो ज़िन्दगी पीट कर जगाती है.
मज़े के ख़िलाफ़ नहीं हूँ मैं, _ छोटे मज़े के ख़िलाफ़ हूँ..
कोई भी निर्णय हो _ पैमाना एक ही होना चाहिए ..
जागे हुए आदमी का जिंदगी स्वयं साथ देती है.
वाकई दुखी होते हम, _ तो दुख छोड़ न देते ?
” तुम गलत राहों को ठुकरा कर तो देखो “
बातें आज़ादी की और मोह कटघरे से ?
आज़ादी उनके लिए है _ जिनमे ज़िद है.
संसार नहीं किसी को हराने आता है, तुम्हारी आंतरिक दुर्बलताएँ हराती हैं तुमको.
दुख हमे संसार ने नही दिये है, हमारे दुख हमारे अज्ञान का अंजाम है.
न अच्छा है न बुरा है संसार, समझ गए तो रास्ता न समझे तो दीवार.
चाँद की तरह शीतल होना हो तो _ पहले सूरज की तरह जलना सीखो..
ख़ुद जितना साफ़ रहोगे _ दूसरे को भी उतना _ कम गन्दा करोगे.
जग को साफ़ जानने के लिए _ मन साफ़ करो.
साधना माने सफाई __ जीवन से कचरा बाहर करो.
साहसी मन समस्या को नहीं, स्वयं को सुलझाता है.
समाधान समस्या में ही छुपा होता है.
इतना गंभीर मत बनो, कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है.
ज्ञान बहुतों को मिलता है, काम किसी – किसी के आता है.
ज्ञान आजादी देता है.
सच्चाई के साथ चलने के लिए जो भी कीमत लगती हो लगा देना,

_ क्योंकि अगर नहीं चलोगे, तो और ज़्यादा बड़ी कीमत देनी पड़ेगी..!!

जब सच्चाई कभी हार नहीं सकती _ तो तुम्हारी आँखों में इतनी मजबूरी क्यों है ?
अड़े ही रहते हैं जो सच के दीवाने हैं, _ जो गिरना चाहते हैं उनके सौ बहाने हैं..
उसका दुर्भाग्य कम है, जिसको कोई मिला ही नहीं ऐसा जो उसे राह दिखा सके और सच बता सके !

पर जिसको कोई मिले ऐसा जो राह दिखा सके और सच बता सके, और वो उसको घर के दरवाज़े पर ही रोक दे,

उससे बड़ा अभागा कोई दूसरा नहीं होगा.

उन गलतियों की कोई माफ़ी नहीं है,

जहाँ आप जानते हैं क्या सही क्या गलत लेकिन जानते-बूझते गलत को चुनें..

लोगों को अपने जीवन में केवल उस सत्य के संदर्भ में मूल्य दें जो वे आपके जीवन में लाते हैं.

Let people have value in your life only in the context of the Truth they bring to your life.

संसार जो दुःख देता है, तुम उसको चुनोगे, तो वो दुःख क्रमशः बढ़ता ही जाएगा, _ _ और वो तुम्हें अपनी गिरफ़्त में और लेता जाएगा।

सच्चाई तुम्हें जो दुःख देती है, उसको चुनोगे, तो धीरे-धीरे दुःख कम होता जाएगा, _ _ दुःख से मुक्त होते जाओगे।

खाओ पीओ, ऐश करो ! ऐसा बोलने वाले क्या ऐश कर रहे है ?

जो ईमानदार हैं, वो तो बता देते हैं अपना दुख..
पर जो महा बेईमान हैं वो खुद भले ही तड़प रहे हों लेकिन सुख का मुखौटा ओढ़े रहते हैं ताकि दूसरे उनके सुख को देख कर तड़पें !
खा पी के, भोग विलास से आनंद कभी नहीं मिलता,
आनंद मिलता हैं बंधनों और बेड़ियों को काटने से… मुक्ति से
दुख तुम्हारी ओर फेंकने वाले, हज़ारों लोग हो सकते हैं

और सैकड़ों स्थितियाँ हो सकतीं हैं,

पर दुख तुम स्वीकार करोगे या नहीं करोगे, इसमें अंतत; चुनाव तुम्हारा ही होता है.
तुम सच की परवाह कर लो _ सच तुम्हारी परवाह कर लेगा

अगर जीवन तुम्हारा साथ नहीं दे रहा है _ तो तुमने ज़रूर कहीं सच का साथ छोड़ा है

तुम सच के हो जाओ _ जीवन तुम्हारा हो जाएगा

सत्य से प्रेम है तो सत्य खुद बता देता है, __ उस तक कैसे पहुंचना है.
सच में जीना हल्की बात नहीं होती, कीमत तो अदा करनी ही पड़ती है.

” सच सस्ता होता तो सभी सच में जी रहे होते “

तुम्हारा जन्म दूसरों से अपनी तुलना करने के लिए नहीं हुआ है,

_ तुम्हारा जन्म अपनी सच्चाई को अभिव्यक्ति देने के लिए हुआ है.

सच और इंसान का वही नाता है जो पानी और मछली का।

वो तुम्हें ललचाएँगे, पर तुम बाहर मत आना।

मछली तो पानी बिन जान दे देती है।

कैसा है इंसान जो सच बिना जिए जाता है !

जो सही है, उसको ज़िन्दगी में लेकर आइए !

ये मत कहिए कि मेरे पास समय नहीं है, या मेर मजबूरियाँ हैं, सीमाएं हैं !!

अपनी सीमाओं के बीच में ही एक छोटी- सी शुरुआत कीजिए,, आज ही !!!

जिस चीज को भूलना चाहोगे, वो और याद आएगी.

जिसे भूलना हो, _ उससे बड़ी किसी चीज़ को लगातार याद रखो..

छोटी चीज अपने आप भूल जाओगे…

कभी रंग_ कभी धूप_ कभी धूमिल_ मैदान है,

बदलते मौसमों में भी_ आसमान तो आसमान है..

दूर, _ जितनी भी दूर तुम देख सकते हो,

हमेशा याद रखना __ उसके आगे भी मंज़िलें हैं..

सही को वजह की जरुरत नहीं पड़ती, _

_ और गलत को कोई वजह जायज़ नहीं कर सकती !

तुमने जन्म इसलिए नहीं लिया था कि

घड़ियाँ खरीदो, शर्ट खरीदो, व्यवसाय बढ़ाओ, नाम करो, परिवार करो !

समय की रेत पर ये घरौंदे खड़े करने के लिए नहीं जन्म हुआ था तुम्हारा !

तुम्हारा जन्म हुआ था ताकि जन्म सार्थक कर सको फिर और जन्म न लेना पड़े।

तैरना आता है तो यही पानी पार लगा देगा _

तैरना नहीं आता तो यही पानी जान ले लेगा,

पानी न अच्छा है न बुरा _ ज़िन्दगी की धारा को दोष मत दो – ” तैरना सीखो “

जितनी बार उचित दिशा में क़दम उठाओगे, आगे की राह और आसान हो जाएगी.

तुम्हारा हर क़दम निर्धारित कर रहा है कि अगला क़दम आसान पड़ेगा या मुश्किल.

हर कदम तुम्हें बदल देता है _ अगले कदम पर तुम तुम नहीं रहोगे., इसीलिए आगे के क़दमों की कल्पना या चिंता करना व्यर्थ है

_ तुम बस अभी जहाँ हो वहाँ से उठते एक कदम की सुध लो.

अगर रोशनी की तरफ चल रहे हो तो, हर कदम के साथ उजाला बढता जायेगा,

तो हर कदम से अगले कदम की हिम्मत मिलेगी, तुम कदम तो बढाओ.

कल का क्या होगा, ये कल पर छोड़ दो.

अगर अभी जो है सामने _ उसे ठीक कर लिया, _ तो कल अपने-आप ठीक हो जाएगा.

तुम्हें एक क्षण नहीं लगेगा नकली को नकली जान लेने में, _ अगर तुम असली हो गए.

जिसने अपने आपको धोखा देना बंद कर दिया, _ अब संसार उसे धोखा नहीं दे पाएगा.

जो दूसरों से धोखा खाना न चाहते हों, _ वो सबसे पहले अपने आपको धोखा देना बंद करें.

सच जानना है यदि दुनिया का _ तो सीधा तरीका है, ” तुम सच्चे हो जाओ “

जो सच्चा है वो तुम्हारे साथ चल देगा _ जो झूठा है, वो अपने आप बिदक जाएगा.

” शरीर की उम्र नहीं, चेतना का स्तर देखो “_ और इससे निर्णय करो कि

कौन है _ जिसकी बात सुननी है, _कौन है _ जिसकी बात नहीं सुननी है.

सच्चा दोस्त तुम्हें तुम्हारे करीब ले आता है,

नकली दोस्त तुम्हें तुमसे दूर ले जाता है.

साथ चलने वाला राह दिखा भी सकता है, और राह भटका भी सकता है ;

साथी संभल के चुनना, भाई !

अपने स्वयं के जीवन का निरीछण करें, फिर आप सत्य को पहचान पाएंगे.
जीवन को ऊँचे से ऊँचा लछ्य दीजिए, मन को सार्थक काम से भर दीजिए,

मन में कचरे के लिए जगह बचेगी ही नहीं.

काम ध्यान से चुनो और ये हिम्मत रखो कि जो काम चुनने लायक नहीं है,

_ उसे ठुकरा दो.

काम किसके लिए कर रहे हो, अगर यह पता है तो काम कैसे करना है _

__ यह अपने – आप सीख जाओगे.

छोटे काम पर तो छोटी निराशा भी हावी हो जाती है,

बड़े काम पर कोई छोटी निराशा हावी नहीं हो सकती.

जो छोटी बातों में खो गया, वो छोटा ही हो गया,

बड़ा याद हो जिसको, छोटे की चिंता नहीं उसको.

जिसको चाहिए होती है उसको ऊँचाई मिल जाती है,

तुम्हें मिली नहीं क्योंकि तुम्हें चाहिए नहीं थी.

जिन्हें ऊपर उठना है, वो ऊपर उठने का बहाना ढूँढ लेते हैं,

जिन्हें ऊपर नहीं उठना _ उन्हें हिमालय की ऊँचाइयों पर भी गन्दगी दिख जाती है.

जिसके पास कुछ बड़ा नहीं होगा, ये उसकी सज़ा है_

_ वो हर छोटी चीज़ को बहुत बड़ी समस्या बना लेगा.

तुम्हारी समस्या ये नहीं है कि कुछ सुलझता नहीं, सुलझ तो सौ बार जाता है.

तुम मुझे ये बताओ, सुलझी चीजों को _ उलझाते क्यों हो सौ बार ?

क्यों उठे हो आज सुबह –

पिछला दिन दोहराने के लिए, _ या नया दिन लाने के लिए ?

बरसाती कीड़े का- सा है आदमी का जीवन, ऐसे चुटकी बजाते बीत जाता है

_ और हम इसी भ्रम में हैं कि अभी समय बहुत है हमारे पास..

यही कर्तव्य है आपका – कि जब दस लोग मूर्खता कर रहे हों, तो उनके साथ आप मूर्खता न करें.

आप उनके दबाव में उनके जैसे न बन जाऍं, तो उनके सुधरने की भी संभावना बढ़ जाती है.

जो अपनी जिंदगी में संतुष्ट नहीं है, _ वही दूसरों की जिंदगी में ताक झाँक करता है.
जीने का मजा तब आता है, जब एक बहुत उंचा मकसद तुम्हारी जिंदगी पर छा जाता है.
ज़िंदगी की सबसे बड़ी बर्बादी है, _ छोटी – छोटी बातों में फँस जाना.
शून्यता का मतलब है खुद से मुक्त होना, और जहां शून्यता है वहां परमात्मा है.
लड़ो _ स्थिर होकर, शांत होकर, मौन होकर, _लड़ो ;

_ दुनिया को ऐसे लड़कों की बहुत ज़रूरत है..!!

कितना कुछ बोलती हैं ये चुप्पियाँ !

पर किसी की चुप सुनने के लिए _ तुम चुप होने को तैयार भी हो ?

बोलने लायक हो कुछ तो ही बोलो, _ नहीं तो मौन बहुत सुंदर है.
त्याग की यही परिभाषा है : जो बैचैन करता हो ” छोड़ो “
तड़पते हुए मन को शान्ति मिले _ _ यही एकमात्र धर्म है.
तुम्हारा हर काम कैसा होता है ?_  जैसे तुम होते हो.
हमारे कष्ट ही प्रमाण हैं _ हमारे भ्रमित होने का.
ज़रा सीधा होकर जीना है, ज़रा सरल, ज़रा भोला रहकर जीना है, _ होशियारी थोड़ी कम !
सीधे रहो, सरल रहो __ सिर्फ़ चालाक आदमी ही चालाकी का शिकार बनता है.
तुम्हारी चालाकी ही तुम्हारा बंधन है ; जो सरल है वो स्वतंत्र है.
चालाकी का जवाब, चालाकी नहीं, _ समझदारी है.
उसने कहा तो कहा, तुमने सुना क्यों ! दूसरों से प्रभावित क्यों हो जाते हो ?
” जीवन एक रंगमंच है ” इसमें अपना किरदार समझदारी से निभायें.
जिन्हें आगे बढ़ना हो, वो वापस लौटने के रास्ते बंद करें.
जो उचित है वो करो, अंजाम की परवाह छोड़ो.
जब निगाह में मंज़िल बसी हो, तब रास्ते में जो मिलता है, तुम उसका सम्यक उपयोग कर ही लेते हो.
मंज़िल से अगर प्यार हो, तो अनजाने रास्ते भी अपने हो जाते हैं.
मंज़िल से प्यार हो तो_ रास्ता प्यारा हो जाता है.
सही मार्ग जाना है तो खतरा उठाना है.
एक जिंदगी है__ दबे- दबे जीने मे क्या मजा है.
न चिंता न चाहत, तुम्हारा स्वभाव है ” बादशाहत “
जिसे पाने का लालच नहीं, उसे छिनने का डर भी नहीं.
जब भीतर गहराई रहती है, तो मन में लहरें कम उठती हैं.
चोट शब्दो से नहीं, उम्मीदों से लगती है.
उम्मीद छोड़ो, काबिलियत बढाओ.
सही काम चुनिये, डूब के करिये.
आकर्षक तो बहुत चीजें लगती हैं, बात आकर्षण की नहीं _ अंजाम की है.
सही काम के लिए जो भी युक्ति करनी पड़े, जितना भी श्रम करना पड़े कम है.
इतनी मेहनत से लड़ो, इतनी मेहनत से खेलो, कि नतीजे से फ़र्क ही न पड़े.
ढलान पर तो पत्थर भी लुढ़क लेता है, _ ऊंचाई पर जाने के लिए मेहनत चाहिए.
तुम्हारी दिशा ठीक होनी चाहिये, लोग साथ दें तो ठीक, ना दें तो ठीक.
करिए, कर डालिये ! काम यदि सही है तो हिचक कैसी ? समझ कर भी सोचते रहना ईमानदारी नहीं..
जब सीने मे सच्चाई रहती है तो छाती खुद ही चौड़ी रहती है.
किसी को मत बताओ तुम्हे करना क्या है, उसे कर के दिखाओ.
अभी को साधो, कल अपने आप ठीक हो जायेगा.
पुराने रास्तो पर चलते हुए, नयी मंजिल पर कैसे पहुंच जाओगे !
कुछ सफर ऐसे होते हैं, जिनमे सिर्फ रास्ता ही हमसफर हो सकता है.
जब दूसरे का हित, अपने सुख से अधिक कीमती लगे, _ तब सुख शुद्ध होकर आनंद कहलाता है.
दुख के न होने में आनंद नहीं है, _ दुख से न हारने में आनंद है.
आनंद है _ दुख और सुख – दोनों के तनाव से मुक्ति..
तुम्हारे साथ हो वही रहा है, जो तुमने तय किया है.
कोई भी कीमती चीज़ मुफ़्त नहीं मिलती, पात्रता दर्शानी पड़ती है.
हार हो जाये कोइ बात नहीं, हौशला नहीं टूटना चाहिए.
हार के भी जिसका कुछ न बिगड़े, _ सिर्फ़ उसी की जीत है.
खेल तो चलता रहेगा, लेकिन खेल कौन रहा, जीवन तुमसे या तुम जीवन से.
बहुत सारी बातो से डरते हो, लेकिन जीवन के बेकार चले जाने से क्यू नही डरते हो.
समय डर कर बीता दिया, तुमने अपना क्या बचा लिया.
कायर, तुम मरने के लिए तैयार हो, लेकिन जीने के लिए नहीं..
मनुष्य जीना ही तब शुरु करता है, जब वो डरा हुआ नही होता है.
हम डरे हुये है की हमारा कुछ बुरा न हो जाये, पर डर से बुरा और क्या होगा.
न डरना है _ न डूबना है _ नदिया बीच गुज़रकर _ नदिया पार उतरना है.
अगर परेशान रहते हो तो पक्का है कि, जीवन जीने के तरीके में कोइ भूल है.
दुख से बचने के लिये जिसकी तरफ भाग रहे हो, वो और भी बड़ा दुख है.
मन की चंचलता कोइ समस्या नही है, तुम स्थिर नही हो ये समस्या है.
अगर अपने मर्जी से ही चल रहे हो, तो रुक कर दिखाओ.
जब दुख परेशान करे तो दुख से कहो, सुख तो टिका नही, तु क्या टिकेगा.
मुझे मत बताओ की तुम्हे पता क्या है, मुझे दिखाओ तुम जी कैसे रहे हो.
देने वाला तो दे ही रहा है, जिन्हें न मिल रहा हो_ वो पुछे,_मेरी नियत है क्या..
जिसने आफतो मे मजा लेना सीख लिया है, वही इस जन्म का आनंद उठा पाता है.
प्रेम मे वादों की कोइ किमत नहीं, प्रेम में वे वादे भी निभ जाते हैं, जो किये ही नहीं.
दूसरों की ओर देखना बंद करो, प्रेम तुम्हारी आन्तरिक पूर्णता है.
प्रेम का नियम है : चाहे मिला हो, न मिला हो, बाँटना पड़ेगा.
मन की बैचेनी का चैन के प्रति खिंचाव ही प्रेम है.
प्रेम का अर्थ ये नहीं होता कि मेरे तुम्हारे विचार मिलते हैं,

प्रेम का अर्थ होता है कि मैं तुम्हारे हित के लिए उत्सुक हूँ, आतुर हूँ !

लोग कहते हैं, सच्चा प्यार मिलता नहीं ;

मैं कहता हूँ, सच्चा प्यार तुमसे बर्दाश्त होता नहीं.

आज मौका है जग जाओ, एक दिन ऐसा आएगा, जब आप चाह कर भी नही जग पायेंगे.
भटकना तुम्हारी नियति नही, तुम्हारा चुनाव है.
जब कोइ गलती करो तो उसे स्वीकारो ” गलती से तो आजाद हो जाओगे “

नही तो वही गलती फिर दोहराओगे.

उन गलतियों की कोई माफ़ी नहीं है जहाँ आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत लेकिन जानते – बूझते गलत को चुनें.

फैसले की घड़ी कुछ देर की चुनौती होती है, _ लालच-डर-वासना ये उस समय ज़ोरदार हमला करते हैं, _

_ इनका वार बस उस एक घड़ी बर्दाश्त कर जाओ तो लंबे समय चैन से जियोगे.

जब मन में लालच और डर होता है, तो वो चीज़ें जिनकी कोई कीमत नहीं, कोई हैसियत नहीं,

वो भी तुम पर हावी हो जाती है.

अपने लिए क्या जीना ? अपने लिए क्या लिखना ?

तुम्हारे लिए लिखता हूँ, तुम पढ़ोगे या नहीं – न जानता हूँ _ न जानना है.

किसको तुम ना कहते हो, किसको तुम हाँ कहते हो,

इसी से तुम्हारी जिंदगी तय होती है.

जिगर चाहिए, हौसला चाहिए, भीतर ज़रा आग चाहिए

किसी की हिम्मत नहीं होनी चाहिए ” तुमसे फालतू बात करने की “

तुम्हारे अलावा कौन है जो तुम्हें हरा सके ?

किसी और से कभी कहाँ हारे हो तुम !

मन जहाँ जाता हो उसे जाने दो, क्योंकि

मन से लडाई करके आजतक, ना तो कोई जीता है ना जीत सकता है.

वो दूसरा नहीं, वो तुम हो, जब दूसरों सी ज़िन्दगी बिता रहे हो, तो अंजाम भी तुम्हारा दूसरों सा ही होगा.

जिन्हें अपना अंजाम बदलना हो, वो अपनी ज़िन्दगी बदलें..

निंदा के लायक शायद बहुत लोग हैं, पर निंदा करना अपना ही समय ख़राब करना है न ?

जितनी देर बुराई करी उतनी देर में कुछ सार्थक ही कर लिया होता,

कुछ सुंदर ही कर लिया होता, तो तुम्हारा दिन कितना अलग होता _ कभी सोचना !

पानी को मथ कर घी निकालने की कोशिश कर रहे हो ?

प्रयास न करने से भी घातक है _ गलत जगह पर बार बार प्रयास करना.

हम कीचड़ में लोटने का लुत्फ़ उठाते हैं, और फिर अपनी भद्दी शक्ल का इल्ज़ाम

रो कर, चिल्ला कर औरों पर लगाते हैं ” अजीब हैं हम ! “

घोर संघर्ष के बीच यदि चैन नहीं, तो कहीं नहीं ; _ संघर्षों के खत्म होने की प्रतीछा मत करो,

संघर्ष कभी खत्म नहीं होते – – संघर्षों के मध्य ही चैन सीखो

ज़िन्दगी का तो मतलब ही है कठिनाई _ सही कठिनाई चुनो, सही कष्ट चुनो.
परिपक्व आदमी का पहला लछण है – – अकेले चल पाने से डर ना लगना.
किसी की मदद करने में जितना प्रेम चाहिए, उतनी ही सावधानी भी। आपका दायित्व है कि उसे शीघ्रतिशीघ्र इस क़ाबिल बना दें कि उसे आपकी मदद की ज़रूरत रहे ही नहीं।

मददगार की तरह किसी के जीवन में बने ही न रहें। देखें कि कितनी जल्दी आप स्वयं को अनावश्यक बना सकते हैं। यही असली मदद है।

इससे पहले कि तुम्हें किसी दूसरे का सहारा न लेना पड़े, तुम्हें जो उचित है, उसका सहारा लेना पड़ेगा.

उचित सहारा कौन – सा है ?

उचित सहारा वो होता है, जो शनैः शनैः तुम्हें ऐसा बना दे, कि तुम्हें फिर किसी सहारे की आवश्यकता न रहे.

जितना ज़रूरी है कमज़ोर को सुरक्षा देना, _ उतना ही ज़रूरी है उसको सुरक्षा न देना जो कमज़ोर नहीं है।

क्योंकि जो कमज़ोर नहीं है अगर तुमने उसे सुरक्षा दे दी, _ तो वो कमज़ोर हो जाएगा।

सही जगह पर जितना समय गुज़ारोगे, अशांत जगह पर वक़्त गुज़ारना उतना मुश्किल होने लगेगा _ तुम्हारे लिए ..
तुम जहाँ भी समय लगा रहे हो, _ चलो लगा दो. _ हम तो बस एक ही सवाल पूछेंगे,

_ वो समय जहाँ लगाया, _ वहाँ शांति मिली या नहीं मिली ?

डर, लालच, बेचैनी सभी देखने में अलग-अलग लगते हैं लेकिन इनकी जड़ एक ही है ;

_ यदि आप किसी एक को अपने जीवन से निकाल पाएँ तो बाक़ी अपनेआप चले जाएँगे !

कोई भी चीज़ इस संसार की _ इतनी कीमती नहीं _ कि उसके लिए _ अपनी आत्यंतिक शांति को _ दाँव पर लगा दें.
दुःख का असर तुम पर होता है, लेकिन तुम्हारा एक कोना ऐसा है _ जहाँ दुःख नहीं पहुँच सकता.

” उस कोने को याद रखो बस “

न रुतबे न ताकत न महलो – मकान के लिए, _ तुम्हारे भीतर है कोई तड़पता _

_ पंख और उड़ान के लिए _ मुट्ठी भर आसमान के लिए..

” ऊँचे लोगों की संगति हमेशा नहीं मिलती ” अगर उनके सामने नहीं बैठ सकते,

तो उनके शब्दों के साथ बैठ लो ” संगति ही सबकुछ है “

सारी ज़िंदगी, सारी किस्मत, तुम्हारी इसी बात से तय हो जाती है कि

तुमने किसको अपना आदर्श बना लिया और किसकी संगति स्वीकार कर ली.

” जितने अँधेरे में तुम जीओगे, उतने तुम्हारे पास सपने होंगे ” ज़रा प्रकाश तो जलाओ, हक़ीक़त देखो_

फिर बताना मुझे कि _ क्या मन अभी – भी इधर- उधर भटकता है.

व्यक्ति भी वही भला है, जिसकी संगति में तुम मौन हो सको। जान लो कि कौन तुम्हारा मित्र है, कौन नहीं ।

जिसकी संगति में तुम मौन हो सको, वो तुम्हारा दोस्त । और जिसकी संगति में तुम अशांत हो जाओ, वो तुम्हारा दुश्मन है।

—— सावधानी से चाहना, क्योंकि जिसे चाहोगे वैसे ही हो जाओगे. ——

समझ से जियो, नहीं तो जीवन निर्दयता से समझाता है !!

अधिकांश परिवार हिंसा भरा, बेहोशी भरा जीवन जीते हैं और सोचते हैं मौज तो है !

जब बिना अध्यात्म के पैसा बढ़ता जा रहा है, मौज, अय्याशी, विलासिता बढ़ती जा रही है तो सत्य की जरुरत क्या है ?

ऐसी सोच के परिवारों में दो खोट हैं, पहला बाहरी खुशियों से अंदर कोई ख़ुशी नहीं मिलती !

दूसरा ऐसे परिवारों के नजदीक जाओगे तो पाओगे कि उनके अंदर रोग हैं, समस्याएं हैं !!

मुझसे अगर कुछ सीखना चाहते हो, तो यही सीखो कि जीवन में बड़े विवेक से और बड़ी निष्कामना से सही लक्ष्य बनाना है, और फिर उसमें आकंठ डूब जाना है।

मेहनत अपने-आप हो जाती है, गिननी नहीं पड़ती.

ठीक वैसे ही जैसे बैडमिंटन खेलो तो स्कोर गिनते हो, कैलोरी तो नहीं न ? कैलोरी अपने-आप घट जाती है. इधर स्कोर बढ़ रहा है, उधर कैलोरी घट रही है.

पीछे-पीछे जो होना है वो चुपचाप हो रहा है, वैसा ही जीवन होना चाहिए.

तुम वो करो जो आवश्यक है, उससे तुम्हारा जो लाभ होना है वो पीछे-पीछे चुपचाप हो जाएगा; तुम्हें वो लाभ गिनना नहीं पड़ेगा.

” ऐसे जियो कि जैसे खेल हो, जान लो की खेल है, फिर जान लगाकर खेलो ? “

उम्मीद मत रखो, सिर झुका कर चुपचाप काम करो, _

_ अच्छा परिणाम आ जाए, बहुत अच्छी बात है ..

सही निर्णय ही सही जीवन का आधार होते हैं.

निरन्तर सत्य को चुनने का कोई विकल्प नहीं होता.

अगर जीवन को सरल, सहज, शांत बनाना है, _ तो हर कदम, जो सही है उसे चुनना होगा.

मन डरेगा . . . आलस रोकेगा, _ लेकिन हिम्मत कर, सही निर्णय लेना होगा..

जो पाने पर जितना खुश होता है वो छिनने पर उतना दुखी होगा.

मिलना हो कि बिछड़ना, पाना हो कि गँवाना, एक से रहो.

मानो खेल हो, _ जीते तो बस हल्के से मुस्कुरा दिए और हारे तो भी बस मुस्कुरा दिए, बात खत्म !

जो उत्तेजित बहुत होते हैं वही फिर अवसाद में जाते हैं.

हम उतने ज़रूरी नहीं हैं जितना हमने अपने – आपको बना रखा है,

आपसे पहले भी दुनिया थी, आपके बाद भी दुनिया रहेगी _

_ ” किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ना है “

सही नियत से जीवन जीना ही ईमानदारी भी है, और सफलता भी ;

_ ईमानदारी से सफलता नहीं मिलेगी, ईमानदारी ही सफलता है.

सही काम के लिए मौका मिलता नहीं, जीवन से छीनना पड़ता है.

छीनने का बल दिखाएं _ ” यही शक्ति है “

मन में, या जीवन में, जो कुछ भी चल रहा है, उसे समझने पर ज़ोर दो ;

पसंद – नापसंद बाद में देखी जाएगी.

कुछ नया लाना है, कुछ बेहतर बनाना है,

कल अच्छा था या बुरा था, उस पर नहीं रुक जाना है,

यात्रा को ही जन्म लेते हैं, यात्री को चलते जाना है

मेहनत से कल बनाया था, मेहनत से आज बनाना है,

मंज़िल आई बीत गयी, अब आगे कदम बढ़ाना है.

उदास होते हो तो _ दूसरों की वजह से,

उत्तेजित होते हो तो _ दूसरों की वजह से,

ऊबते हो तो _ दूसरों की वजह से,

आकांछा है तो _ दूसरों की,

और डर है तो _ दूसरों से,

” सब कुछ तो दूसरों का ही है “

नज़र साफ़ होने लगी हो, बेहतर दिखाई देने लगा हो, तो जान लो कि रोशनी की तरफ बढ़ रहे हो.

जो बातें पहले उलझी-उलझी थीं, अगर वो अब सरल और सुलझी हुई हो गई हैं, तो जान लो कि रोशनी की तरफ़ बढ़ रहे हो.

और उलझनें यदि यथावत हैं, तो जान लो कि अँधेरा कायम है.

आचार्य जी, मन का माहौल बढ़िया कैसे रखें ?

➖✨➖✨➖✨➖

मन का माहौल बढ़िया रखने का एक ही तरीका है

मन को किसी ऊँचे-से-ऊँचे कार्य में लगा दीजिए।

मन का मौसम उतना ही सुहाना रहेगा,

जितना सुहाना मन का लक्ष्य।

मन का लक्ष्य ही अगर सुंदर नहीं है,

तो मन की हालत सुंदर नहीं हो सकती।

मन का लक्ष्य अगर होगा—नोट और सिक्के।

तो मन भी वैसा ही होगा सिक्के जैसा, नोट जैसा।

फाड़ो तो फट जाए और गिराओ तो टन-टन-टन-टन करे !

मन का लक्ष्य होगा अगर बड़ी-बड़ी इमारतें

और घर और फैक्ट्रियाँ,

तो मन भी फिर ईंट-पत्थर जैसा होगा।

खुरदुरा, शुष्क, रुखा और टूटने को तैयार

कि ईंट पटक दी और टूट गई।

मन भी ऐसा ही होगा खट से टूट गया।

मन का जैसा लक्ष्य मन की वैसी हालत।

मन कमज़ोर लगता हो अगर, तो जान लीजिए

मन ने लक्ष्य ही कमज़ोर बना रखे हैं।

जीवन में, जो भी आप की परिस्थितियों में,

उच्चतम लक्ष्य संभव हो उसको रखिए

और आगे, और आगे बढ़ते जाइए,

जीवन इसीलिए है।

छोटी-छोटी चीज़ों में उलझे रहेंगे,

तो ‘मन’ भी छोटा हो जाएगा। ➖➖➖➖

मन चंगा रखिए, जीवन अपनेआप चंगा रहेगा !

बुढापा हो या जवानी,

हम सबकी एक पटकथा, एक कहानी
जब आपने ख़ुद रोशनी देखी नहीं,
जब आपको ख़ुद पता नहीं कि जीवन क्यों है?
और कैसे जिए जाना चाहिए ?
तो आप बस यही करते हो कि
जो बंधे-बंधाए तरीके हैं-
उनका अनुकरण करते चलो!
जीने का कोई बड़ा कारण हम जानते नहीं।
बचपन से यही देखा है,
ऐसे ही जिए हैं कि- अपने सुख के लिए जियो !
पढ़ाई कर रहे हो किस लिए?
अपने अंक बढ़ जाएँगे।
नौकरी कर रहे हो किस लिए?
अपना आदर – सम्मान होने लगेगा,
अपनी आय आने लगेगी।
अगर तुम्हारे पास जीने के लिए
कोई सार्थक ध्येय नहीं है
तो सत्तर – अस्सी साल की जिंदगी
बहुत लंबी हो जाती है, काटे नहीं कटती।
हमारे जीवन में कुछ ऊंचा क्यों नहीं है ?
हमारे जीवन में सब छुद्र छोटी-छोटी चीज़ों
के लिए ही जगह क्यों है?
बड़े का आगमन बहुत सारी
छोटी समस्याओं को यूँ ही हटा देता है।
कुछ तो तुम्हारी ज़िन्दगी में ऐसा हो
जिसको तुम पूरी तरह से समर्पित हो जाओ।
सीखा बहुत कम है, तालीम है अधूरी _ इस घने जंगल में आदमजात चाहता हूँ ||
मुझे बात करने से रोकते हो तुम, _ तुम बात कर सको यही बात चाहता हूँ ||

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected