मस्त विचार 548 | Jan 9, 2015 | मस्त विचार | 0 comments शहर की सड़को को गौर से देखा जाए कोई रिश्ता सा इनसे भी नज़र आए, मेरा कुछ था, मगर वो कुछ भी न था रास्ता, वो जो रोज़ मेरे घर को जाए…. Submit a Comment Cancel reply Your email address will not be published. Required fields are marked *Comment Name * Email * Website Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ