सुविचार 3994
यदि मन में समभाव की स्थिति आ जाए तो फिर परिस्थितियों और वातावरण का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और भीतर भी कोई खलबली नहीं होती.
_इसे यूँ समझें कि अपनी इज्जत आपको खुद ही अर्जित करनी पड़ती है.
_ स्वाभाविक रूप से मन में गलत कर्मों का अपराधबोध भी बना रहता है.
_ जो हो गया उसे मिटाया तो नहीं जा सकता लेकिन इंसान को हर दिन अपराध बोध की आग में जलने को मजबूर होना पड़ता है.
_इसलिए क्योंकि दुनिया को रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता, आपके आँसुओं से..