सुविचार 4366
जब घरेलू फैसला करने के लिए बाहर के बंदे की जरुरत पड़ जाये तो,
समझ लें हमारा खानदान बरबाद हो चुका है.
समझ लें हमारा खानदान बरबाद हो चुका है.
यहाँ हर चीज़ सिर्फ और सिर्फ अपनी-जैसी पैदा होती है, “
फिर मन से दोस्ती की और जीत गया..
_ उसने बोल : ऐसा सुना था होती थी कीमत ज़ुबान की.!!
_ और उसका एक ही परम मंत्र है, प्रयास प्राप्ति तक, और विधि है, परिपूर्ण प्रकिया,”