मस्त विचार 4415
वक़्त की धुंध मे छिप जाते हैं ताल्लुक़ात,
बहुत दिनों तक किसी की आंखों से ओझल ना रहिये।
बहुत दिनों तक किसी की आंखों से ओझल ना रहिये।
मैं तो आइना हूँ, जो देखूंगा, साफ़ साफ़ लिख दूँगा.
ख़्वाहिशों का क्या वो तो पल पल बदलती हैं.
क्योंकि ” मौज, होश की अर्धांगिनी है.