मस्त विचार 4608
मुझे इल्म-ओ-अक़्ल उतनी ही देना मेरे साहिब,
कि कभी दख़ल न कर सकूँ तेरी रजा में..
कि कभी दख़ल न कर सकूँ तेरी रजा में..
_ तुम देर से मिले….. इतना नुकसान ही काफी है..!!
मगर दूसरों को क्या करना चाहिए, उसकी सलाह सबके पास है.
कुछ खतों पर पते तो होते हैं लेकिन नसीब में मंजिल नहीं होती,,,,!!!!