मस्त विचार 4435
कांटा समझ के मुझसे न दामन बचाइए,
गुजरी हुई बहार की एक यादगार हूँ.
गुजरी हुई बहार की एक यादगार हूँ.
इस दौर में जीने की सज़ा कम तो नहीं है.
तब ही से दूर बैठा हूं सब से…
हिम्मत ही नहीं होती अपना दर्द बांटने की.
ये वो ही लोग है जो ज़िन्दगी समझते हैं..
जो भीड़ तुम्हारे पीछे खड़ी है वो भी किसी मतलब से खड़ी है.