मस्त विचार 4246

परिंदों को मंजिल मिलेगी यक़ीनन, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं.
अक्सर वो लोग खामोश रहते हैं, ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं

मस्त विचार 4245

क्या बेचकर हम खरीदें ” फुर्सत ऐ ” ज़िन्दगी…

_ सब कुछ तो ” गिरवी ” पड़ा है जिम्मेदारी के बाजार में..!!

‘जिम्मेदारी’ वो पिंजरा है, जहाँ इंसान आजाद होकर भी कैद है..!!

मस्त विचार 4244

इस भाग-दौड़ कि दुनियां में समझ नही आता की

थकने के बाद शाम होती है या शाम होने के वजह से थकान..

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