सुविचार 4692
दो हिस्सों में बंटी है ” ज़िंदगी सारी “
अभी उम्र नहीं है और अब उम्र नहीं है..
अभी उम्र नहीं है और अब उम्र नहीं है..
लेकिन इनकी छाप…हमेशा दूसरों के हृदय में विराजमान रहती है..
क्योंकि वो मुझे उतना ही समझेंगे जितनी उनमे समझ है..!!
जब ये बात हम सभी जानते हैं__ तो फिर मानते क्यों नहीं ..?
चेहरे परख लेने की बुरी आदत है मुझे..!!
अब हम लोगों से नहीं खुद से इश्क़ करते हैं.
अपनी महानता और भाग्य पर संदेह करना बंद करो..
दबे- दबे जीने का क्या मजा ??