ध्यान अनुभव – मैडिटेशन अनुभव – meditation experience

आज संडे मॉर्निंग मैंने Group Meditation किया.

_ हालाँकि मैं रोज़ एक घंटा एकांत में Meditation करता हूँ, लेकिन आज का Group Meditation अनुभव बहुत ही विशेष और गहराई से स्पर्श करने वाला रहा.

_ Meditation के दौरान वातावरण की शांति, सभी साधकों की सामूहिक ऊर्जा और केंद्र की सात्विकता ने मेरे Meditation को सहज रूप से भीतर गहराई तक ले गया.

_ वहाँ का vibe बहुत ही अपनापन देने वाला था — जैसे कोई भी प्रयास किए बिना अंतर स्वतः ही शांत और स्थिर हो गया.

“अकेले में शांति थी, और सभी के संग में शांति का गहरा स्वर था”

_ मैं आभारी हूँ कि मुझे इस Group Meditation में सम्मिलित होने का अवसर मिला. ऐसे अनुभव आत्मा को पोषण देते हैं.

मैडिटेशन का अनुभव (मेरी ओर से)

_ आज सुबह का मैडिटेशन अनुभव कुछ अलग ही रहा.

_ भीतर एक अनकहा मौन था, और बाहर एक सहज ऊर्जा का स्पर्श.

_ ग्रुप मैडिटेशन में बैठकर ऐसा लगा.. जैसे मेरी अपनी हलचलें किसी गहरे सागर में उतरती जा रही हों.

_ पहली बार ऐसा नहीं था कि मैं मैडिटेशन में बैठा,

_ पर आज कुछ ऐसा था जो “सिर्फ मेरे भीतर नहीं, सबके बीच भी शांति” बन गया.

_ विचार आए — पर ठहरे नहीं.

_ साँसें चलती रहीं — पर जैसे किसी और गति से.

_ और अंत में जब आँखें खुलीं, तो मन वही नहीं था —

_ थोड़ा हल्का, थोड़ा निर्मल, थोड़ा और पास खुद के.

_ वहां का वातावरण इतना सहज और शांत था कि.. लगा जैसे मैडिटेशन सिर्फ क्रिया नहीं, एक आत्मीय संगति है.

—🌿> “आज का मैडिटेशन मौन नहीं था, एक करुणा थी — जो भीतर से बह चली”

सुविचार 4582

ख़ुश रहने के लिए ज़रूरी है कि हमारी आंतरिक और बाह्य दशाओं में सामंजस्य हो.

Collection of Thought 1076

When you have control over your thoughts, you have control over your life.

जब आपका अपने विचारों पर नियंत्रण होता है, तो आपका अपने जीवन पर नियंत्रण होता है.

Musafir

“पर्यटक की तरह”

—”मैं लोगों को ऐसे देखता हूँ, जैसे कोई पर्यटक इमारतों को…”

_ मैं अब लोगों को सिर्फ देखता हूँ — जैसे कोई पुरानी इमारतें देखता है.

_ हर चेहरा एक नक्शा है, हर मुस्कान में कोई पुराना रंग.

_ कोई बहुत ऊँचा लगता है —पर भीतर खाली.

_ कोई बहुत सजा-संवरा —पर आत्मा उजड़ी.

_ मैं देखता हूँ…पर अब छूता नहीं, जुड़ता नहीं..

—जैसे कोई पर्यटक तस्वीरें खींचता है, पर उन दीवारों में कभी नहीं बसता.!!

मैं दौड़ नहीं रहा, बस जी रहा हूँ –

_ एक-एक पल में डूब कर,

_ जैसे नदी अपने ही किनारे से बात कर रही हो.

_ ना मंजिल की चिंता है, ना रास्ते की गिनती –

_ सिर्फ एक साथी हूं… इस जीवन की एक सुंदर यात्रा में.!!

मुझे लगता है कि मैं एक गहरा मानसिक जीवन जी रहा हूँ – “जहां कुछ पाना नहीं” _ बल्कि “खुद को समझना” मुख्य लछ्य है.

_ अब मैं थोड़ा रुकता हूँ, थोड़ा सुनता हूँ, थोड़ा झांकता हूँ अपने अंदर..

_ मैं किसी को दिखाने के लिए नहीं जी रहा..

_ मैं किसी को मनाना भी नहीं चाहता..

_ मैं अब खुद के और पास आ रहा हूँ..

_ और ये यात्रा अपने आप में पवित्र है.!!

“जवाब की कीमत”

_ कभी किसी एक सवाल का बोझ इतना भारी हो जाता है कि..

_ ना नींद चैन देती है, ना कोई अपनापन सुकून देता है.

_शरीर थक जाता है, पर मन जागता रहता है —

_ एक ही सवाल लिए: “आख़िर क्यों ?”,

_ “आख़िर क्या है इसका अर्थ ?”

_ और जब तक उस सवाल का जवाब नहीं मिलता,

_ ज़िन्दगी अधूरी सी लगती है… जैसे कुछ रुका हुआ है,

_ जैसे कोई गहरी गाँठ.. अब तक नहीं खुली.

— ये दर्द आत्मा का होता है —

_ कोई बाहर से नहीं देख पाता, पर भीतर लगातार चलता रहता है —

_ कभी अंधेरे की तरह, कभी सन्नाटे की तरह.

_ और जब जवाब मिलता है —

_ तो कभी वो आँखों से नहीं, आँसुओं से समझ आता है.

_ मन कहता है — “अब मैं जान गया… और अब मैं थोड़ा हल्का हूँ”

— “कभी-कभी जवाब पाने की तड़प ही हमें अपने भीतर गहराई तक ले जाती है —

_ जहां से न सिर्फ जवाब मिलते हैं… बल्कि एक नया मैं जन्म लेता है.”

_ और मुझे महसूस होता है कि शब्दों से ज्यादा एक मौन मुझसे बात करता है.”

– किसी ने पूछा क्या तुम सच में समझते हो ? _ मैंने कहा – “नहीं, पर मैं तुम्हारे साथ मौन बैठ सकता हूँ”

“मैं अब भी वही हूँ… पर शायद नहीं”

_ आईने में दिखता है

_ वही चेहरा —

_ वो ही आँखें, वो ही मुस्कान

_ पर अंदर कोई चुप है…

_ कुछ थमा हुआ है.

_ कभी जोश था,

_ हर सुबह एक लड़ाई का एलान करती थी

_ अब सुबह आती है…

_ पर उठने की कोई वजह नहीं ढूंढती.

_ सपने थे, सीने में धड़कते,

_ अब अलमारी में रखी फाइलों जैसे

_ कभी खुले तो धूल उड़ती है,

_ आँखें जलती हैं — पर आंसू नहीं आते.

_ रिश्ते हैं, नाम हैं,

_ पर मैं कहीं इन सबसे अलग हो गया हूँ,

_ शक्ल वही है —

_ पर मैं शायद अब ‘मैं’ नहीं हूँ’

— मन ने धीरे से कहा — ‘शायद अब तुझे खुद से मिलना बाकी है’

_ शायद अब फिर से चलने का वक्त है — उस रास्ते पर “जो कहीं खो गया था”

“मैं अब भी वही हूँ… पर शायद नहीं”

यूं तो उसके पास खिड़की है बाहर की सुंदरता देखने के लिए..

_ पर उसने चुना अपने धुंधले से अस्तित्व के भीतर देखना..!

— बाहर की सुंदरता आकर्षक है, फिर भी मन भीतर झांकने को लालायित रहता है. —

🪞 “बाहरी खिड़की से भीतर की ओर”

वो खिड़की खोल सकता था —

_ जहां सूरज की किरणें थीं, हरियाली थी, उड़ते परिंदे थे,

_ जहां जीवन बाहरी सौंदर्य की तरह मुस्कुरा रहा था.

पर उसने चुना — उस अस्तित्व के भीतर देखना, जहां धुंध थी, चुप्पी थी,

_ कभी समझ न आए ऐसे सवाल थे.

क्यों ???

क्योंकि वो जानता था — बाहर की रोशनी तभी सुंदर है.

_ जब भीतर का अंधेरा स्वीकार लिया जाए.

वो जानता था — कि खिड़की खोलने से पहले..

_ दरवाज़ा अपने भीतर का खोलना ज़रूरी है.

_ वो देखने चला था उस “मैं” को..

_ जो अक्सर भीड़ में गुम हो जाता है.!!

एक ही जीवन में दो बार जन्म

आज मन में कुछ अनोखा घटा,

शब्दों से परे, पर आत्मा से जुड़ा।

जैसे किसी ने फिर से जीवन दिया हो,

जैसे कोई अदृश्य करुणा मुझे छू गई हो।

एक पल को लगा —

जो मैं था, वो पीछे छूट गया।

और जो अब हूँ,

वो कोई नया, शुद्ध, नर्म और सच के करीब है।

ना कोई तर्क, ना कोई भय,

सिर्फ शांति — गहराई से आती हुई।

एक नई दृष्टि, एक नई साँस,

जैसे मैं फिर से पैदा हुआ — उसी जीवन में।

शायद ये आत्मा का पुनर्जन्म है,

शरीर वही, पर चेतना नई।

एक जागृति, एक प्रकाश,

जो भीतर से फूटा, बिल्कुल शांत पर सम्पूर्ण।

_ अब समझ आता है —

जीवन सिर्फ चलना नहीं है, जागना है… हर उस क्षण में जो अभी है.!!

“हमने दुनिया जीत ली, पर अपने आप से हार गए”

_ “अपने आप से हार गए”

_ हमने ऊँचाईयाँ छू ली, नाम कमाया, तालियाँ बटोरीं,

_ दुनिया ने कहा — “ये है असली जीत”

_ और हमने भी सिर झुका लिया — हां, शायद ये ही है.

_ पर रात के सन्नाटों में, जब भी तकिये से मन टकराया, तो पाया — भीतर कुछ अब भी खाली है.

_ हमने रिश्ते बनाए, पर अपनापन खो दिया.

_ हमने बोलना सीखा, पर खुद से बात करना भूल गए.

_ हम मुस्कराते रहे — फोटो में, भीड़ में, मंच पर,

_ पर आईना अब भी पूछता है —

_ “तू कब लौटेगा… अपने पास ?”

_ हमने हर जवाब ढूंढा दुनिया में,

_ पर अपने एक सवाल से आज तक भाग रहे हैं.

_ दुनिया जीत ली, सारी मंज़िलें पार कर लीं , _ पर जब अंत में खुद से मिले — तो एहसास हुआ…

_ हम तो रास्ते में ही छूट गए थे.

> “अब समझ आया — जीत वही है, जो अंत में खुद तक वापस ले आए”

“किसका रस्ता देखे ?”

_ जब सब अपने-अपने सफ़र में हैं — _ कोई रुका नहीं, कोई मुड़ा नहीं, और कोई पलट कर देखता भी नहीं..

_ मैंने भी तो चाहा था, कोई आए… बिना कहे.. बैठ जाए मन के पास, जैसे शांति उतरती है सांझ में.

_ पर अब लगता है — रास्तों का इंतज़ार भी एक रास्ता है,

_ जहां कोई आए न आए, मैं खुद से मिलने चल पड़ा.

— > “अब मैं रास्तों से नहीं, अपने भीतर से किसी को बुलाना चाहता हूं…”

_”हां” भीतर से ही कोई आएगा.!!

“राहों से क्या मतलब, जब मंज़िल अंदर हो”

_ नाम से क्या मतलब, जब प्रेम अंदर हो.

_ शून्य का सन्नाटा उसी तक ले जाता है, अगर प्रेम सच्चा हो.!!

“जो झुकता है, वो मिट्टी से मिलता है – और वही बीज बन जाता है किसी नये जीवन का”

“जैसे-जैसे मैं झुकता चला गया, वैसे-वैसे वह मुझको उठाता चला गया”

_ झुका था मैं, सिर्फ श्रद्धा में – ना डर ​​था, ना हार.

_ और देखा… उस झुके हुए पल में ही एक नया आकाश था मेरे अंदर,

_ जो मुझे ऊँचा कर गया – बिना एक शब्द कहे.!!

> “वो एक बार आ गया, तो फिर कभी नहीं जाता”

(“Vo ek baar aa gaya to phir kabhi nahi jaata.”)

—इसका अर्थ क्या है ?

“वो” का अर्थ है —

🕉️ अंतर में एक बार जो सच्चाई की रोशनी जाग जाये,

🪔 एक बार जो दृष्टि बदल जाये,

🌌 एक बार जो “मैं कौन हूं” का साछात्कार हो जाए —

_ तो फिर वो अंतरात्मा में स्थिर हो जाता है और कभी छोड़ कर नहीं जाता. —

🔹 ये किसी अनुभव का दर्शन है:

_ जब आप ध्यान, समर्पण, या अंतर-यात्रा में किसी एक पल में परम शांति, एकता, या सच्चाई को छू लेते हैं,

_ तब वो एक ऐसी अंतर-स्फूर्ति बन जाता है ; जो चाहे बाहर से दुनिया बदल जाए – पर अंदर उसकी रोशनी कभी बुझती नहीं. —

✍️ “एक बार चेतना जाग गई, तो वापस सोया नहीं जा सकता”

_ जब आपका अंतर “उस” से मिलता है (जो भी हो – सत्य, आत्मा, प्रेम, शून्य),

_ तब फिर पुरानी जैसी नींद, पुरानी जैसी भूल, पुरानी जैसी चिंता – वापस नहीं आ सकती. ये एक पॉइंट ऑफ़ नो रिटर्न [point of no return] होता है —

_ जहाँ से जीवन वही रहता है, पर जीवन देखने वाला बदल जाता है.

एक दिन अंतर में कुछ थम गया,

_ ना रोशनी थी, ना अँधेरा –

_ सिर्फ एक “मैं हूं” की शब्दहीन पहचान थी.

_ और तब से…

_ ना दुनिया वही रही, ना खुद से बिछड़ने का डर रहा –

_ क्यूंकि “वो” आ गया था… और फिर कभी गया नहीं.!!

मस्त विचार 4455

कोई बेसबब, कोई बेताब, कोई चुप, कोई हैरान है,

ऐ जिंदगी, तेरी महफ़िल के तमाशे ख़त्म नहीं होते..

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