मस्त विचार 3674
कोई नहीं दुश्मन अपना, फिर भी परेशान हूँ मैं,
अपने ही क्यों दे रहे हैं जख्म, इस बात से हैरान हूँ मैं.
अपने ही क्यों दे रहे हैं जख्म, इस बात से हैरान हूँ मैं.
इसलिए हमें हमेशा अच्छा ही सोचना चाहिए.
कभी – कभी ज्यादा नेकी भी सज़ा लाजवाब दिलाती है.
उसकी विशेषताओं की बार-बार याद दिलाओ.
मन से निर्मल हो नहीं पाते, रोज- रोज गंगा नहाने वाले.
लेकिन यार, बात – बात पर रंग बदलें, इतने भी रंगीन नहीं हैं हम.
_ कि आप पत्थर के बने हैं या शीशे के.
If you fulfill your obligations everyday you don’t need to worry about the future.