मस्त विचार 4444
अगर ‘ अंजान ‘ हो, तो गुज़र क्यूँ नहीं जाते ?
और पहचान रहे हो, तो ठहर क्यूँ नहीं जाते ??
और पहचान रहे हो, तो ठहर क्यूँ नहीं जाते ??
पर ऐसा नहीं है कि मैंने चलना छोड़ दिया है.
_वो ज़िन्दगी में अपना काम बहुत जिम्मेदारी से करते हैं..!!
_ जरूरतें …जिम्मेदारियां… और ख्वाहिशें…!!
_ वो सीधा इंसान को सिखा देती है ‘जीना कैसे है’
_ तब समझ आता है कि बातों से पेट नहीं भरता.!!
दूसरे आपको कैसे देखते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, _ आप खुद को कैसे देखते हैं इसका मतलब सब कुछ है.
अब वक्त खुद से सुलह करने का है,,
जिसकी रगो में खून नहीं जुनून दौड़ता है..
नियत अच्छी रखो, काम अपने आप ठीक होने लगेंगे.