Quotes by – ओशो – Osho- A

‘ठोकरे खा कर भी ना संभले तो मुसाफ़िर का नसीब, वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया !’ 
अगर आप सच देखना चाहते हैं, तो न अपनी सहमति और न असहमति में राय रखिए.
जीवन तुम्हें जहां ले जाए, तुम निर्भय होकर जाओ, _ और जीवन तुम्हें हर जगह कीमती अनुभव देगा..!!
हम अपनी धारणाएं थोपते हैं, वरना प्रकृति में न कुछ शुभ है, न कुछ अशुभ है ;

कोई अच्छे और बुरे की बात प्रकृति में नहीं है, क्योंकि वहां विकल्प नहीं है, वहां चुनाव ही नहीं है.

जितना ज्यादा से ज्यादा इन्द्रियों को विश्राम दें, उतना शुभ है, उतनी शक्ति इकट्ठी होगी ;

_ और उतनी शक्ति ध्यान में लगाई जा सकेगी, अन्यथा हम एग्झास्ट हो जाते हैं !!

जिन्दगी में आप जो करना चाहते है, वो जरूर कीजिये, ये मत सोचिये कि लोग क्या कहेंगे. क्यों कि लोग तो तब भी कुछ कहते है, जब आप कुछ नहीं करते.
तुम्हारा जीवन किधर है, जानने का सही तरीका है _ ये देख लो कि तुम समय कहां दे रहे हो.
सारी शिक्षा व्यर्थ है, सारे उपदेश व्यर्थ है, अगर वे तुम्हें अपने भीतर डूबने की कला नहीं सीखाते.
कोई आदमी चाहे लाखों चीजें जान ले. चाहे वह पूरे जगत को जान ले. लेकिन अगर वह स्वयं को नहीं जानता है तो वह अज्ञानी है.
असली सवाल यह है कि भीतर तुम क्या हो? अगर भीतर गलत हो, तो तुम जो भी करोगे, उससे गलत फलित होगा. अगर तुम भीतर सही हो, तो तुम जो भी करोगे, वह सही फलित होगा.
जो इंसान जिंदगी के मज़े ले रहा हो उसे मालिक बनने की कोई चाह नहीं होती है, क्योंकि वह जीवन के असली आनंद के बारे में जानता है, वह जानता है की ख़ुशी कभी खरीदी नहीं जा सकती.
तुम्हारे लिए तो यह भी सीखने जैसा है कि _  तुम्हारे बिना भी _ दुनिया चलती है..!!
अगर हम थोड़ा भी झुकने को राजी हो जाएं,_ तो सारा अस्तित्व !

गीत गाता और नाचता दिखाई देगा !

जिंदगी कोई मुसीबत नहीं है बल्कि ये तो एक खूबसूरत तोहफा है.
जीवन ठहराव और गति के बीच का संतुलन है.
हमारे दुःख की वजह में से एक वजह दूसरों का सुख है,

जब दूसरे हमें खुश दिखाई पड़ते हैं तो हम और दुःखी होते चले जाते हैं.

दूसरे लोग क्या सोचते हैं इसकी नाहक चिंता न लो,

सिर्फ यह देखो कि तुम्हें क्या अच्छा लगता है.

कीचड़ को मत देखो, उसमें जो कमल छिपा है उसे देखो. तुम्हारी दृष्टि ऐसी हो जाए तो तुम पूरे जीवन का सार निचोड़ ले सकते हो.
भीतर ‘ध्यान’ का दिया जला हो तो

तुम चाहे पहाड़ पर रहो या बाज़ार में कोई अंतर नहीं पड़ता

तुम्हारे पास ‘ध्यान’ हो तो कोई गाली तुम्हे छूती

नहीं, ना अपमान, ना सम्मान ना यश, ना अपयश

कुछ भी नहीं छूता अंगारा नदी में फेंक कर देखो जब

तक नदी को नहीं छुआ तभी तक अंगारा है, नदी को

छूते ही बुझ जाता है तुम्हारे ध्यान की नदी में सब

गालियाँ, अपमान, छूते ही मिट जाते हैं…तुम दूर अछूते

खड़े रह जाते हो में इसी को परम स्वतंत्रता कहता हूँ,

जब बाहर की कोई वस्तु, व्यक्ति, क्रिया तुम्हारे

भीतर की शान्ति और शून्य को डिगाने में अक्षम हो

जाती है तब जीवन एक आनंद है.

“जैसे ही मन पूरी तरह से खाली हो जाता है, तुम्हारी पूरी ऊर्जा जागरण की एक लौ बन जाती है। यह लौ ध्यान का परिणाम है।”
सिर्फ आवश्यक बातें सुनो और करो, और धीरे-धीरे तुम शुद्धता की एक सफाई देखोगे, ऐसे जैसे कि तुमने अभी-अभी स्नान लिया है, तुम्हारे भीतर संकल्प पैदा होने लगेगा. वह ध्यान के विकसित होने के लिए आवश्यक मिट्टी बनेगा. यदि तुम अपने मन में कुछ अंतराल खाली छोड़ देते हो, वे चेतना के खाली क्षण ध्यान की झलकें बन जाएंगे, उस पार की पहली झलक, अ-मन की पहली चमक.
हम जिसके लिए लड़ते है, अंततः वही हम हो जाते है ;

लड़ो सुंदर के लिए और तुम सुंदर हो जाओगे,

लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे,

लड़ो श्रेष्ठ के लिए तुम श्रेष्ठ हो जाओगे.

◆◆◆ सहानुभूति ◆◆◆

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जो तुम्हारे सुख में सुखी नहीं हुआ, वह तुम्हारे दुख में दुखी कैसे हो सकता है? लेकिन सहानुभूति बताने का मजा है। और सहानुभुति लेने का भी मजा है। सहानुभूति बताने वाले को क्या मजा मिलता है? उसको मजा मिलता है कि आज मैं उस हालत में हूं जहां सहानुभूति बताता हूं। तुम उस हालत में हो, जहां सहानुभूति बतायी जाती है। आज तुम गिरे हो चारों खाने चित्त, जमीन पर पड़े हो। आज मुझे मौका है कि तुम्हारे घाव सहलाऊं, मलहम—पट्टी करूं। आज मुझे मौका है कि तुम्हें बताऊं कि मेरी हालत तुमसे बेहतर है।
जब कोई तुम्हारे आंसू पोंछता है, तो जरा उसकी आंखों में गौर से देखना। वह खुश हो रहा है। वह यह खुश हो रहा है कि चलो, एक तो मौका मिला। नहीं तो अपनी ही आंखों के आंसू दूसरे पोंछते रहे जिंदगी भर। आज हम किसी और के आंसू पोंछ रहे हैं! और कम से कम इतना अच्छा है कि हमारी आंख में आंसू नहीं हैं। किसी और की आंखों में आंसू हैं। हम पोंछ रहे हैं!
लोग जब दुख में सहानुभूति दिखाते हैं, तो मजा ले रहे हैं। वह मजा ले रहे है। वह स्वस्थ—चित्त का लक्षण नहीं है। और तुम भी दुखी होकर जो सहानुभूति पाने का उपाय कर रहे हो, वह भी रुग्ण दशा है।
यह पृथ्वी रोगियों से भरी है; मानसिक रोगियों से भरी है। यहां स्वस्थ आदमी खोजना मुश्किल है।
ओशो
अकेले रहने की क्षमता प्रेम करने की क्षमता है। यह आपको विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है.
यह एक अस्तित्वगत सत्य है: केवल वे लोग जो अकेले रहने में सक्षम हैं, प्यार करने, साझा करने, दूसरे व्यक्ति के सबसे गहरे मूल में जाने में सक्षम हैं – दूसरे पर कब्ज़ा किए बिना, दूसरे पर निर्भर हुए बिना, दूसरे को कम किए बिना एक वस्तु के प्रति, और दूसरे के प्रति आसक्त हुए बिना.!!
वे दूसरे को पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यदि दूसरा चला गया, तो वे भी उतने ही खुश होंगे जितने अब हैं.
“उनका सुख दूसरा नहीं छीन सकता, क्योंकि वह दूसरा देता नहीं.” ~ओशो
The capacity to be alone is the capacity to love. It may look paradoxical to you, but it is not. It is an existential truth: only those people who are capable of being alone are capable of love, of sharing, of going into the deepest core of the other person—without possessing the other, without becoming dependent on the other, without reducing the other to a thing, and without becoming addicted to the other. They allow the other absolute freedom, because they know that if the other leaves, they will be as happy as they are now. Their happiness cannot be taken by the other, because it is not given by the other. ~Osho

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