“सब कुछ ठीक है” अक्सर एक झूठा आश्वासन या अधूरा वाक्य बन गया है।

 “सब कुछ ठीक है” — एक अधूरी भावना क्यों ?
 
 
_ क्योंकि: > ज़्यादातर लोग जब कहते हैं: “सब कुछ ठीक है”, तो असल में वे कहना चाहते हैं:
“सब कुछ जैसा चल रहा है, वैसा ही रहने दो… क्योंकि उससे ज़्यादा समझाने की ताक़त अभी मुझमें नहीं है”
_ या फिर: > “सब ठीक है… पर अंदर कुछ अटका हुआ है —
जिसे या तो कह नहीं पा रहा, या कोई समझेगा नहीं”
—
 

 तो असली सवाल:
 
 
कैसे पता चले कि “सब कुछ सच में ठीक है” ?
क्या कोई चेकलिस्ट [Cheklist] हो सकती है?
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 एक सच्ची ‘मन की शांति’ की चेकलिस्ट (Reflection Checklist)
 
 
यहाँ एक सूक्ष्म inward checklist है —जिससे आप रोज़ खुद से पूछ सकते हैं:
“क्या सच में सब कुछ ठीक है ?”
 
# प्रश्न हाँ/ना
1 क्या आज मेरा मन किसी से शिकायत के बिना सो पाया ? 

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2 क्या आज मैंने जो कहा, वही सोचा और महसूस भी किया ? 

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3 क्या आज का दिन बीते कल से थोड़ा हल्का लगा ? 

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4 क्या मैंने आज किसी चीज़ को पकड़े बिना जाने दिया ? 

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5 क्या मैं अकेला रहकर भी बेचैन नहीं था ? 

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6 क्या आज मुझे अपने ही साथ बैठकर अच्छा लगा ? 

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7 क्या मेरे अंदर कोई ऐसी बात नहीं जो लगातार सिर पर घूम रही हो ? 

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8 क्या आज किसी और की खुशी देख कर जलन-ईर्ष्या नहीं हुई ? 

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9 क्या मैंने आज बिना कारण मुस्कराया ? 

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10 क्या आज मुझे “कुछ पाना” नहीं, बस “होना” अच्छा लगा ? 

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 अगर इनमें से 5 से अधिक सवालों का उत्तर ‘हाँ’ है…तो आप सच में कह सकते हैं:
 
> “शायद आज सब कुछ सच में ठीक है — बाहर नहीं, पर अंदर ज़रूर”
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 > “जब कोई परंतु न बचे, और मन चुपचाप मुस्कराए —
 
_ वहीं से शुरू होता है, ‘सब कुछ सच में ठीक है'”