हमें वही बातें,वही चीज़ें, वही वक़्त, वही जगहें ज़्यादा अच्छी लगती हैं जो कभी अतीत में थीं..
_ अतीत हमें सुविधा देता है कि हम उसे चाहे जैसे प्रस्तुत कर सकते हैं, वर्तमान से बहुत कम लोग संतुष्ट होते हैं, बहुत कम लोगों का वर्तमान उनके मुताबिक़ होता है और भविष्य वह तो सदा अनिश्चित ही रहा है सो अपने दुख, अपने सुख को खोजने के लिए हमें अतीत की शरण में जाना ही पड़ता है..
_ जवानों को अपना बचपन ज़्यादा-ज़्यादा याद आता है तो बूढ़ों को जवानी..हालाँकि जब वह अपने उस दौर में थे तो अक्सर उससे पीछा छुड़ाने की सोचते..ऐसे ही दूर परदेस बसे लोगों को अपनी माटी की याद सताती है तो देश में रह रहे लोगों को पिछले गुज़रे बरस..
_ हमें अतीत हो चुके या होने की कगार पर पहुँचे रीति रिवाज, भोज्यपदार्थ, परम्पराएं अधिक लुभाती हैं हालांकि जब वह लोगों की सामान्य दिनचर्या में शामिल थीं तो लोगों ने प्रयास करके उन्हें बदल दिया..
बड़े शहरों में ग्रामीण थीम पर बड़े बड़े रेस्त्रां खुल रहे जहां लालटेनें होंगी, सूप होगा, चक्की होगी, कुंए होंगे, होंगी माटी की दीवारें..जब यह सहज,सुलभ थीं, आम जनजीवन का हिस्सा थीं हम इनसे उकताकर शहर भागे..शहर में अतीत की याद भुनाने के लिए ऐसे रेस्त्रां खोले..
_हम जिस शहर में रहते हैं, जिस जगह जीते हैं उस वक़्त उससे रूठे रूठे रहते हैं..बाद के बरसों में जब वह जगह छूट जाती है तब वह हमारे सपनों पर कब्ज़ा जमा लेती है..
_हम अपने उन क़रीबी रिश्तों को अधिक याद करते हैं, उनके लिए अधिक रोते हैं, उनकी अधिक बातें करते हैं जो अब नहीं हैं..और इस तरह हम बड़ी चालाकी से उनके साथ होने का लाभ उठाते हैं हालांकि जब हम उनके साथ थे उकताए से रहे..
_हमारा वर्तमान क्या इतना विपन्न होता है कि उसपर हम दस मिनट भी बात नहीं कर सकते और अतीत इतना सम्पन्न कि हमारी बातें ख़त्म ही न हों..
_जाने क्यों सारी वीरतायें, सारी सम्पन्नताएँ, सारी सुंदर सुधियां, सारी निर्मल छवियां हमने जादूगर रूपी अतीत के थैले से ही निकलते देखा, वर्तमान तो सबका रूखा-फ़ीका और उदास मजदूर सा ही दीखता है..