तुम नदी को नहीं पकड़ सकते, मेरे दोस्त.
_ तुम चाहे जितना प्रयास करो—लेकिन यह तुम्हारी उंगलियों से फिसल जाएगी.
_ सब कुछ बदल रहा है…यह सांस, यह शरीर, यह कहानी जो तुम खुद को सुनाते रहते हो.
_ लेकिन फिर भी, हम पकड़ कर रखते हैं.
_ पुराने नामों को, पुराने दर्द को, उन लोगों को जो पहले ही चले गए हैं, हमारे उन संस्करणों को जो अब मौजूद भी नहीं हैं.
_ हम यह सब अपने सीने में पत्थरों की तरह ढोते हैं.
_ सोचते हैं कि अगर हम कसकर पकड़ेंगे, तो यह हमें सुरक्षित रखेगा.
_ लेकिन सच्चाई यह है—यह हमें भारी बनाता है.
_ पानी को देखो.
_ यह मौसम से नहीं लड़ता.
_ सर्दी आती है—यह बर्फ बन जाता है.
_ गर्मी आती है—यह भाप बन जाता है.
_ मानसून में, यह दहाड़ता है.
_ चुपचाप, यह धुंध बन जाता है.
_ कोई नाटक नहीं.. कोई सवाल नहीं.. बस बदलाव..!
_ इसलिए यह बहता है.. इसलिए यह जीवित रहता है.
_ और हमें देखो-हम हर मोड़ पर अटक जाते हैं.
_ “ऐसा नहीं होना चाहिए था”
_ “इस व्यक्ति को नहीं जाना चाहिए था”
_ “यह दर्द यहाँ नहीं होना चाहिए था”
_ लेकिन नदी चट्टान पर रोती नहीं है.
_ यह दूसरा रास्ता खोज लेती है.
_ छोड़ देने का मतलब हार मान लेना नहीं है.
_ पुरानी कहानी को घसीटना बंद करो.
_ जो पहले से है उसका विरोध करना बंद करो.
_ कभी-कभी छोड़ देना बस साँस छोड़ना है.
_ कभी-कभी यह बस इतना कहना है, “ठीक है, मुझे नहीं पता..
_ लेकिन मैं फिर भी चलूँगा”
_ छोड़ दो जैसे बर्फ पिघल कर वसंत में आती है.
_ नरम – शांत – कोई लड़ाई नहीं.
_ आप यहाँ वैसे ही रहने के लिए नहीं हैं.
_ आप यहाँ घुलने और फिर से बनने के लिए हैं.
_ मैं यहाँ कोई नया ज्ञान नहीं बता रहा हूँ, बल्कि आपको तथ्यों की याद दिला रहा हूँ.!!