सुविचार – क्रोध- गुस्सा – नाराज़गी – 012

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गुस्से का अर्थ है कि जब कोई चीज हमारे विरोध में है, स्थिति प्रतिकूल है, उसका विरोध जताने के लिए जो हमारी  ऊर्जा शक्ति विस्फोट करती है, उस स्थिति का नाम क्रोध है.
कभी कभी गुस्से में क़ुछ लोग दूसरों को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं, _ उन्हें पता ही नही चलता के वो अपना ही नुकसान कर रहे हैं, _ _ सार ये है कि अच्छी जिंदगी के लिए कभी कभी हमें, कुछ चीजों को, #कुछ घटिया लोगों को, #कुछ घटनाओं को, #_कुछ कामों को और #कुछ बातों को इग्नोर करना चाहिए ..

_ अपने आपको मानसिक मजबूती के साथ इग्नोर करने का आदी बनाइये.

सभी लड़ाइयाँ लड़ने लायक नहीं होतीं ; कई बार जाने देना वास्तव में जीत है. अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें, उन लोगों को क्षमा करें जिन्होंने आपको चोट पहुंचाई है, और लोगों या चीजों को अपने ऊपर हावी न होने दें ; _ यह अंततः आपको मार सकता है.
क्रोध क्या हैं ? क्रोध भयावह हैं, क्रोध भयंकर हैं, क्रोध बहरा हैं, क्रोध गूंगा हैं, क्रोध विकलांग है.
क्रोध को पाले रखना, गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के समान हैं, इसमें आप स्वयं ही जलते हैं.
क्रोध को छमा से, विरोध को अनुरोध से, घृणा को दया से, द्वेष को प्रेम से और हिंसा को अहिंसा की भावना से जीतो.
जब लोग गुस्से में हों तो उनकी बात सुनें, क्योंकि तभी असली सच्चाई सामने आती है.

Listen to people when they are angry, because that is when the real truth comes out.

अपने गुस्से को स्पष्ट करें, व्यक्त न करें, और आप तुरंत तर्क-वितर्क के बजाय समाधान का द्वार खोल देंगे.

Explain your anger, don’t express it, and you will immediately open the door to solutions instead of arguments.

जब लोग गुस्से में हों या नशे में हों तो उनकी बात ध्यान से सुनें क्योंकि तभी अनफ़िल्टर्ड सच सामने आता है.

Listen carefully to people when they are angry or drunk because that’s when the unfiltered truth comes out.

वह जो _ एक पल के गुस्से को दबा सकता है, कई दिनों तक होने वाले दुख को रोक सकता है.
मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है.
क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए.
क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है.
जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है.
सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं थकता, जितना क्रोध या चिन्ता से पल भर में थक जाता है.
क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो, अगर ज़्यादा क्रोध में तो सौ तक.
क्रोध में उत्तर मत दीजिये, _ ऐसे उत्तर हमेशा खुद के लिए नया प्रश्न और परेशानी बनते हैं..!!
क्रोध हवा का वह झोंका है जो बुद्धि के दीपक को बुझा देता है.
क्रोध की फुफकार अहं पर चोट लगने से उठती है.
क्रोध करना पागलपन हैं, जिससे सत्संकल्पो का विनाश होता है.
वास्तव में हमें हर हाल में अपने क्रोध पर काबू रखना चाहिए, जिससे हमारा या अन्य किसी का अहित न हो सके.
जीवन में जो भी कर्म करो, होश में करो. क्रोध में अगर होश रह जाए तो विनाश नहीं होता.
यदि आप गुस्सैल और अहंकारी हैं तो आपको दुश्मनों की कोई जरुरत नहीं है, आपको बर्बाद करने के लिए ये दो दुर्गुण ही काफी हैं.
गुस्से में बोला हुआ एक कठोर शब्द इतना जहरीला बन सकता है कि आपकी हजार प्यारी बातों को एक मिनट में नष्ट कर सकता है.
ग़ुस्सा करने वालों की अक़्ल महदूद और कमज़ोर होती है, न ख़ुद उस इंसान को फ़ायदा पहुँचाती है, न किसी दूसरे को, साथ ही उसकी बदकलामी, बदज़ुबानी से लोग उस से दूरी बनाने लगते हैं,

एक वक़्त ऐसा आता है कि इंसान बिल्कुल अकेला रह जाता है, ग़ुस्से और ज़बान को का़बू में रखें, ताकि सबके अज़ीज़ बन सकें.

क्रोध अपने आप विपत्ति उत्पन्न करता हैं, क्रोधी मनुष्य दूसरों को हानि पहुँचाता है परन्तु उससे अधिक अपने आप को घायल कर लेता है.
क्रोध बुरा होता है, पर जहां जरुरत हो, वहां दिखाना भी चाहिए, नहीं तो गलती करने वाले को एहसास ही नहीं होगा कि वह गलत कर रहा है ; वह आपके साथ हमेशा वैसा ही व्यवहार करेगा.
क्रोध करने का अर्थ है, दूसरों कि गलतियों का स्वयं से प्रतिशोध लेना.
क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है. उसमे द्वेष भी है, दुःख भी है, भय भी है, तिरस्कार भी है और अविवेक भी.
जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है.
क्या आप जानते हैं ? क्रोध और आँधी दोनों बराबर हैं ….

शान्त होने के बाद पता चलता है, कितना नुकसान हुआ है ..

खौलते हुये पानी में जिस तरह प्रतिबिंब नहीं देखा जा सकता,

उसी तरह क्रोध की स्थिति में सच नहीं देखा जा सकता है.

क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक सहायक है.
जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो.
क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है.
क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म होता है.
क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहां से खिसक जाती है.
क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी निकलती हैं.
क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है.
क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है.
क्रोध एक स्थिति है, जिसमे जीभ मन से अधिक तेजी से काम करती है.
यदि आप सही हैं तो आपको गुस्सा होने कि जरुरत नहीं..

और यदि आप गलत हैं तो आपको गुस्सा होना का कोई हक नहीं…

क्रोध एक ऐसा तेजाब है जो जिस चीज़ पे डाला जाता है,

उससे ज्यादा उस पात्र को नुकसान पहुंचाता है जिसमे वो रखा है.

गुस्से में आप खुद को भी नहीं संभाल सकते,

लेकिन प्रेम से आप पूरी दुनिया को संभाल सकते हो.

गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो पछताने की जरुरत नहीं पड़े कभी…
क्रोध में व्यक्ति जिद पर अड जाता है, हिंसा पर उतारू हो जाता है और फिर अंहकार में आकर खुद का ही नुकसान कर बैठता है.
अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें, यह खतरे से एक कदम दूर है ; इससे पहले कि वह आपको नष्ट कर दे !

क्रोध एक बहुत ही नकारात्मक भावना है, यह आंखों को अंधा कर देता है और मस्तिष्क को बंद कर देता है, और अंत में यह दर्द लाता है.

अपनी भावनाओं को अपना निर्णय न लेने दें, इसे हमेशा तर्क के अधीन रखें.

इससे पहले कि आप गुस्से से प्रतिक्रिया दें, परिणामों के बारे में सोचें ; _ ऐसा काम कभी न करें जिसके लिए आपको बाद में पछताना पड़े !

लोग हमेशा आपका अपमान करेंगे, आपको परेशान करेंगे, आपको भड़काएंगे ; _ लेकिन उन्हें कभी भी आप पर नियंत्रण न करने दें !

उनके कार्यों को आपकी प्रतिक्रिया निर्धारित नहीं करनी चाहिए.

क्रोध के उपायों में से एक विलंब है ; _ प्रतिक्रिया देने से पहले एक क्षण लें, गहरी सांस लें ; _ जब तक आप सीधे नहीं सोच रहे हैं तब तक कार्य न करें.

_क्रोध से कुछ भी हल नहीं होता है, यह सब कुछ नष्ट कर देता है और हमेशा याद रखें, जो आपको क्रोधित करता है _ वह आप पर विजय प्राप्त करता है.

कुछ लोग हमारे क्रोध के नहीं, बल्कि दया के पात्र होते हैं,

_ इसलिए हमको क्रोध करने से पहले, चिन्तन करना आवश्यक है, कि सामने वाला व्यक्ति क्या है..

— हर किसी पर क्रोध करना उचित नहीं है, कुछ लोग मानसिक रूप से इतने गरीब होते हैं कि उनके पास उनकी हरकतों के अलावा कुछ नहीं होता…

_ जब उन्ही हरकतों पर क्रोध आता है, तो सोचता हूँ, यदि ये इतने ही समृद्ध होते तो ऐसा क्यों करते, फिर उनपर दया आने लगती है !!

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