रख लो आईने हज़ार तसल्ली के लिए,,
_ पर सच के लिए आंखें मिलानी पड़ेंगी..
“दो दिखने वाली आँखों के अलावा भी _ कुदरत ने इंसान को कई आँखें दी है,
_ जरूरत इतनी ही है कि उनको खुला रखा जाये”
सबके पास समान आंखें हैं, लेकिन सब के पास समान दृष्टिकोण नहीं..
_ बस यही बात इंसान को इंसान से अलग करती है.!!
तर्क किए बिना किसी बात को आँखें मूंद कर मान लेना भी एक प्रकार की गुलामी है.
जीवन उसका ही सुधरेगा, जो आँख बंद होने से पहले आँख खोल लेगा.
आपकी आँखें जो देखती हैं, वह हरदम सच नहीं हो सकता.