” बचपन की यादों का सफर “
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ए बचपन, मीठा कितना था तेरा सफर
प्यारा कितना, तेरी यादों का सफर
बीत गए कितनी जल्दी बरस दर बरस
पर ठहर गया तेरी बातों का सफर ।
किताब मांगना, फिर उसे लौटा देना
छत पर आना उसका, वो रातों का सफर।
रूठना बिना बात मेरा, मनाना तेरा
देखना साथ हमारा, तारों का सफर।
क्यों हुआ बचपन की बातो का छिड़ना
हां वो मास्टर जी की बेतों का सफर।
होली में भीगना, गुब्बारे फोड़ना
बहुत सुहाना था त्योहारों का सफर।
याद है वो हौज पे घंटो नहाना
सुहाना था सुबह की सैरों का सफर।
याद वो कपिल का वर्ल्ड कप जीतना
रेडियो पर मुकेश के गानों का सफर।
जून की तपती दोपहरी में खेलना
प्यारा लू से बेपरवाहियो का सफर।
वो नानाजी का प्यार से पढ़ाना
उनकी बेपनाह मुहब्बतों का सफर।
सिलसिला छिड़ा तो, उसका बंद न होना
ए बचपन, मीठा कितना था तेरा सफर
प्यारा कितना, तेरी यादों का सफर