सुविचार – खर्च शादी विवाह में – 036

हम सब देखते हैं, अधिकांश लोग अपने घर की शादी के मौके पर अपनी आन बान शान को दिखाने के लिए जरुरत से ज्यादा पैसा खर्च करते हैं और जिन लोगों को दिखाने के लिए खर्च करते हैं, वो खा पी कर, नुक्स निकाल कर चलते बनते हैं,

_ अब इस ख़ुशी के मौके पर ये सब करके असल में किस को ख़ुशी मिलती है __ ये बात गौर करने लायक तो जरूर है..!!

शादी में आने वाले लोगों के सामने अपने पैसों की नुमाइश करने का प्रयास आपको नहीं करना चाहिए..

_क्योंकि वह लोग तो सिर्फ मजे लेने के लिए आते हैं और मजा ले करके चले जाते हैं और कर्जे में डूब जाते हैं आप, जिससे उबरने में आपको काफी समय लग जाता है.

आसपास के शादीशुदा लोगों के अंदर झांक के देखो _ बात करो _ उनसे तो आप को पता चलेगा कि सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर शादीयां भव्य की जा रही हैं‌.

पर आपसी रिश्तों की गहराई नापोगे तो _ चाहे वो संबंध वैवाहिक हो या परिवारिक _ उसमें आप को चीजें भव्य नहीं _ उतनी जर्जर मिलेंगी _ जिसकी आप ने कल्पना भी नहीं की होगी..
इसलिए दिल की सुनो दिल से करो ; _ इन सब से इतर रिश्तों में मिठास, प्यार का एहसास कैसे बना रहे _ ताउम्र इस बारे में सोचो..
एक वक्त पर पैसा प्रतिष्ठा और समाज साथ नहीं रह जाने ;
_ साथ रहेगा तो जीवनसाथी का साथ और कुछ नहीं.
शादी में इतने खर्च के बावजूद किसी की उत्सुकता दूल्हा दुल्हन देखने तक में नहीं रह गई,

_ घराती हों बाराती बस गए खाए पिए, फ़ोटो खिंचाए और निकल लिए..
_ हालांकि दोनों तरफ़ के घरवाले यह मानते हैं कि इतना खर्च करके.. हमने सबसे अद्भुत शादी की है..
_ जबकि किसी को याद भी नहीं रहता कि पिछली रात क्या खाया, क्या देखा, किससे मिले..
_ अब तो बस लकदक कपड़े, मेकअप, सेल्फी और स्टेटस अपडेट करना ही शादी का मतलब रह गया है.
मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है ;

_ आपका पैसा है, आपने कमाया है.
_आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं, पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं..!!
__ कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा,
_ जितनी आप में क्षमता है… उसी के अनुसार खर्चा करिएगा ;
_ 4 – 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है,
_ दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए..!
_ अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए..
चाय और नमकीन पार्टी में भी फेरे ले कर विवाह की रस्म  निभाई जा सकती है,

इसके लिए लाखों रूपए फूँकने की जरुरत नहीं है..

लाख टके की बात है पर कोई समझने को तैयार नहीं,

शादी विवाह के नाम पर दिखावापन ही समस्याओं की असली जड़ है.

एक दिन की शादी के लिए _ अपनी ढाई साल की कमाई खर्च करना _

_ और ऊपर से फिर भी ताने सुनना _ पता नहीं _ कितना अच्छा लगता है हमें..

शादी पर फिजूलखर्ची को लेकर जब किसी से भी सवाल किया जाता है, तो जवाब मिलता है “शादी कोई बार- बार थोड़े न होती है. इसलिये यह यादगार होनी चाहिए,” पर यादगार किसके लिए ? कर्ज लेकर या फिर अपनी जिंदगी भर की जमा- पूंजी को लूटा कर की गयी फिजूलखर्ची के लिए या फिर हँसते- हँसते माहौल में एक सफल और सुखद दांपत्य जीवन की शुरुआत के लिए ? इस पर गंभीरता से सभी को सोचने की जरुरत है.

शादी हो और खर्च न हो ऐसा संभव नहीं, लेकिन खर्च अगर जरुरत के मुताबिक हो, तो उचित है. कई बार माता- पिता बच्चों की ख्वाहिश के खातिर चुपचाप बोझ वहन करते हैं. शादी के अतिरिक्त खर्चों का खामियाजा बाद में घरवालों को भुगतना पड़ता है. अगर शादी की पोशाक, मंडप की सजावट, खान- पान का मेन्यू, उपहार और दूसरी चीजों पर किया जाने वाला खर्च अगर बजट बना कर किया जाये, तो काफी पैसा बच सकता है. जैसे- शादी की ड्रेस या ज्वेलरी भविष्य में एक या दो बार ही यूज हो पाती है, इसलिए बेहतर है इन्हें रेंट पर ले लिया जाये. बढ़ती महंगाई के इस दौर में किसी एक पछ पर सारा आर्थिक बोझ डालने के बजाय बेहतर है कि दोनों पछ एक तय बजट बना कर ५०- ५० खर्च शेयर कर लें. इससे ही वह शादी यादगार बन जायेगी और लोगों के लिए मिसाल होगी.

आज तक जितनी शादियों मे मै गया हूँ, उनमे से करीब 75% में दुल्हा-दुल्हन की शक्ल तक नही देखी… उनका नाम तक नही जानता था… अक्सर तो विवाह समारोहों मे जाना और वापस आना भी हो गया पर ख्याल तक नही आया और ना ही कभी देखने की कोशिश भी की, कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है…

बैठा भी है कि नहीं, या बरात आई या नहीं…
भारत में लगभग हर विवाह में हम 70% अनावश्यक लोगों को आमंत्रण देते हैं…
अनावश्यक लोग वो है जिन्हें आपके विवाह मे कोई रुचि नही..वे केवल दावत में आये होते हैं…
जो आपका केवल नाम जानते हैं…
जो केवल आपके घर की लोकेशन जानते हैं.. जो केवल आपकी पद-प्रतिष्ठा जानते हैं…
और जो केवल एक वक्त के स्वादिष्ट और विविधता पूर्ण व्यञ्जनों का स्वाद लेने आते हैं…
ये होते हैं अनावश्यक लोग….
केवल आपके रिश्तेदारों, कुछ बहुत निकटस्थ मित्रों के अलावा आपके विवाह मे किसी को रुचि नही होती..
ये ताम झाम, पंडाल झालर, सैकड़ों पकवान, आर्केस्ट्रा DJ, दहेज का मंहगा सामान एक संक्रामक बीमारी का काम करता है.. कैसे..?
लोग आते हैं इसे देखते हैं और सोचते हैं..
“मै भी ऐसा ही इंतजाम करूँगा, बल्कि इससे बेहतर करूंगा “..
और लोग करते हैं… चाहे उनकी चमड़ी बिक जाए..
लोग 70% अनावश्यक लोगों को अपने वैभव प्रदर्शन करने में अपने जीवन भर की कमाई लुटा देते हैं.. लोन तक ले लेते हैं..
और उधर विवाह मे आमंत्रित फालतू जनता , गेस्ट हाउस के गेट से अंदर सीधे भोजन तक पहुच कर, भोजन उदरस्थ करके, लिफाफा पकड़ा कर निकल लेती है..
आपके लाखों का ताम झाम उनकी आँखों में बस आधे घंटे के लिए पड़ता है,
पर आप उसकी किश्तें जीवन भर चुकाते हो…
क्या हमें इस अपव्यय और दिखावे को
रोकना नहीं चाहिए..!
शादी समारोह की औकात बस इतनी ही रह गयी है कि खाना कब चालू होगा…और खा लेने के बाद…कितनी जल्दी घर निकल कर बिस्तर पर लंबे हों… और यहां आप साल भर से प्लान करते मर जाते हो कि कितनी तैयारी कर ली जाय…
हमारी एक कोशिश परिवर्तन की ओर…
“कर्ज” लेकर महंगी शादी, चमकदार बड़े-बड़े टेंट,
और 1 दिन के लिए बारात में 20/50 गाड़ियां,
डीजे, ढोल, ताशे बजाने से क्या होगा.*
1 दिन शेरवानी और घोड़े पर बैठकर नकली राजा बनने के लिए आपको कई सालों तक खच्चर बनकर काम करना पड़ेगा…
*विवाह और शादी समारोह को सिंपल साधे तरीके से करें !
दहेज लेने देने से परहेज करें दिखावटी दुनिया से बाहर निकले और हकीकत का सामना करें !!
अगर भविष्य मे तनाव मुक्त जीवन जीना है तो कर्ज लेकर” घी ” पीना बन्द करें ।
एक संकल्प जरूर करे-न तो कर्ज वाली बहु लायेंगे और न ही कर्ज वाली बेटी देंगे।
शादी जो पहले एक संस्कार होती थी जो अब एक इवेंट बन कर रह गई हैं.

पहले शादी समारोह का मतलब दो लोगों को जुड़ने का एहसास कराते, पवित्र विधि विधान, परस्पर दोनों पक्षों की पहचान कराते रीति- रिवाज, नेग भी मान सम्मान होते थे.
पहले हल्दी और मेंहदी यह सब घर अंदर हो जाता था, किसी को पता भी नहीं होता था. पहले जो शादियां मंडप में बिना तामझाम के होती थी, वह भी शादियां ही होती थी और तब दाम्पत्य जीवन इससे कहीं ज्यादा सुखी थे.
परंतु समाज व सोशल मीडिया पर दिखावे का ऐसा भूत चढ़ा है कि _ किसी को यह भान ही नहीं है कि क्या करना है क्या नहीं ?
यह एक दूसरे से ज्यादा आधुनिक और अमीर दिखाने के चक्कर में लोग हद से ज्यादा दिखावा करने लगे हैं.
शादी की रस्म शुरू होते ही पंडित जी जल्दी करिए, कितना लम्बा पूजा पाठ है, कितनी थकान वाला सिस्टम है” कहते हुए शर्म भी न आती.
वाक़ई, अब की शादियाँ हैरान कर देने वाली हैं. मज़े की बात ये है कि ये एक सामाजिक बाध्यता बनती जा रही है. शादियों में फ़िज़ूल खर्ची धीरे धीरे चरम पर पहुँच रही है.
पहले मंडप में शादी, वरमाला सब हो जाता था. फिर अलग से स्टेज का खर्च बढ़ा, अब हल्दी और मेहंदी में भी स्टेज, खर्च बढ़ गया है.
अब तो सगाई का भी एक भव्य स्टेज तैयार होने लगा है. टीवी सीरियल देख देख कर सब शौक चढ़े है.
प्री वेडिंग फोटोशूट, डेस्टिनेशन वेडिंग, रिसेप्शन, फर्स्ट कॉपी डिजाइनर लहंगा, हल्दी/मेहंदी के लिए थीम पार्टी, लेडिज संगीत पार्टी, बैचलर’स पार्टी,
पहले बच्चे हल्दी में पुराने कपड़े पहन कर बैठ जाते थे अब तो हल्दी के कपड़े पांच दस हजार के आते है. ऊपर से कहते हैं कि शादी एक बार ही होगी..
लड़का -लडक़ी का भविष्य सुरक्षित करने के बजाय पैसा पानी की तरह बहाते हैं.
ज्यादातर लोग दिखावे की नाक ऊंची रखने के लिए कर्जा लेकर घी पी रहे हैं.
कभी ये सब अमीरों, रईसों के चोंचले होते थे _ लेकिन देखा देखी अब मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास वाले भी इसे फॉलो करने लगे है.
रिश्तों में मिठास खत्म ये सब नौटंकी शुरू हो गई. एक मज़बूत के चक्कर में दूसरा कमजोर भी फंसता जा रहा है.
कुछ वर्षों से शादी में औकात से ज्यादा रिसेप्शन का क्रेज तेजी से बढ़ा है. धीरे-धीरे एक दूसरे से बड़ा दिखने की होड़ एक सामाजिक बाध्यता बनती जा रही है.
इन सबमें मध्यम वर्ग परिवार मुसीबत में फंस रहे हैं, _कि कहीं अगर ऐसा नहीं किया तो समाज में उपहास का पात्र ना बन जायें.
सोशल मीडिया और शादी का व्यापार करने वाली कंपनिया इसमें मुख्य भूमिका निभा रहीं हैं.
ऐसा नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे / सोचेंगे का डर ही ये सब करवा रहा है.
कोई नही पूछता उस पिता या भाई से जो जीवनभर जी तोड़ मेहनत करके कमाता है, ताकि परिवार खुश रह सके.
वो ये सब फिजूलखर्ची भी इसी भय से करता है कि कोई उसे ये ना कहे कि आपने हमारे लिए किया क्या ?
दिखावे में बर्बाद होते समाज को इसमें कमी लाने की आवश्यकता है, वरना अनर्गल पैसों का बोझ बढ़ते बढ़ते आपको कर्ज में डुबो देगा और वैदिक वैवाहिक संस्कारों को समाप्त कर देगा..
शादी शादी शादी
सबसे अलग और सबसे शानदार दिखने की चाहत में शादी ब्याह हो या सगाई सब कितने एक जैसे होते जा रहे हैं..
सस्ता हो या महंगा सगाई के गाउन एक जैसे लगते हैं
जयमाल पर भारी लहंगा, जूलरी और मेकअप एक जैसा लगता है
लड़के इंडो वेस्टर्न में एक जैसे लगते हैं
युवा दढ़ियल मिलते हैं
प्रौढ़ तुंदियल दिखते हैं
बूढ़े बुढ़िया जवान दिखने के चक्कर में हास्यास्पद दिखते हैं..
रही सही कसर हल्दी, मेंहदी के बनावटी दिखते फंक्शन ने पूरी कर दी है..
टीवी सीरियल, फिल्मों की कृपा से अलग अलग राज्यों, धर्मों, समुदायों के रीति रिवाजों की खिचड़ी संस्कृति शादियों में दिखती है और उस जगह के ओरिजनल रिवाज या तो समाप्त हो गए हैं या नेपथ्य में चले गए होते हैं..
और इस सबके बावजूद सबसे हैरानी की बात है कि किसी को न तो दूल्हे दुल्हन का चेहरा याद रहता है न सजावट, न खाना पीना..
बस जिन्होंने पैसे खर्च किए हैं और जिनकी शादी होती है वह और उनके घर वाले अपने इंतजामात और सजावट पर रीझे रहते हैं..
अपनी सजी धजी तस्वीरों पर स्वयं मुग्धा दुल्हनें अपनी और अपने पति की तस्वीरें महीनों सोशल मीडिया पर डालती रहती हैं..
_बाकी शादी में गए लोग अपनी अपनी तस्वीर के अलावा किसी की तस्वीर में इंटरेस्टेड नहीं रहते _पर जयमाल के समय सब ऐसे फोन लेकर स्टेज घेर लेते हैं _जैसे अभी जादूगर की टोपी से खरगोश निकलेगा..
मैं ऐसी भयंकर एकरूपता वाली शादियों में जाने के नाम से ही डर जाता हूँ, _पर सामाजिकता का तकाजा निभाने के लिए बचते बचाते भी एक दो शादियां अटेंड करनी पड़ती हैं..
क्यूरेटेड फंक्शन
क्यूरेटेड मुस्कुराहट उकताहट पैदा करते हैं
हर शादी, हर फंक्शन रिपीट टेलीकास्ट जैसा लगता है
यार बस करो _अब कुछ नया सोचो और न सोच पाओ तो _पुराने पर लौट आओ..

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